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________________ १४ भेद में छिपा अभेद देखा जा सकता है। आजकल ऐसी विधियां भी आविष्कृत हो रही हैं। एक व्यक्ति आज जिस स्थान पर बैठा है, दस दिन बान उसी स्थान पर उस व्यक्ति का फोटो लिया जा सकता है। व्यक्ति के शरीर से निरन्तर तदनुरूप आकृति का विकिरण होता रहता है और उस आकृति का फोटो लिया जा सकता है। आकाशवाणी के अधिकारियों का एक प्रश्न था-हिन्दू धर्म और जैन धर्म में भेद क्या है? यह भेद की खोज विशिष्टता की खोज है। केवल समानता की बात करने वाला किसी भी धर्म की विशिष्टता का बोध कैसे कर पाएगा? विशिष्टता का बोध वही कर सकता है, जो भेद को खोजता है। अन्तर है मूल प्रकृति का हमारे सामने प्रश्न है-उत्तराध्ययन और धम्मपद में समानता बहुत है किन्तु असमानता क्या है? इस प्रश्न के समाधान के लिए हमें जैन दर्शन और बौद्ध दर्शन की मूल प्रकृति को समझना होगा। धम्मपद का एक श्लोक है पंच छिदे, पंच जहे, पंच उत्तरीभावए। पांच का छेदन करो, पांच का त्याग करो और पांच की भावना करो। यह एक पहेली है-पांच का छेदन, पांच का त्याग और पांच की भावना। इनमें कुछ बातें समान हैं। पांच का त्याग करो, यह महत्त्व की बात है। त्याग-योग्य पहली बात है- आत्मा नित्य है, इस बात का त्याग करो। इस बिन्दु पर हम उत्तराध्ययन और धम्मपद के प्रकृति-भेद को समझ सकते हैं। बद्ध कहते हैं-आत्मा नित्य है, यह मानना एक भ्रान्ति है। जब तक यह भ्रान्ति नहीं मिटेगी तब तक सम्यग् दर्शन नहीं होगा, निर्वाण का तो प्रश्न ही नहीं है। महावीर कहते हैं-आत्मा नित्य भी है। यदि हम आत्मा को केवल अनित्य मानेंगे तो कहीं टिक नहीं पाएंगे। यह मत कहो-आत्मा अनित्य है और यह भी मत कहो-आत्मा नित्य है किंतु तुम यह कहो-आत्मा नित्य भी है और आत्मा अनित्य भी है। चिन्तन की दो धाराएं दर्शन के क्षेत्र में चिन्तन की दो धाराएं रही हैं- कूटस्थनित्यवाद और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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