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उत्तगध्ययन और धम्मपद
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किन्तु यह तुलनात्मक अध्ययन का मूल विषय नहीं है। यदि धम्मपद और
उत्तराध्ययन का तुलनात्मक अध्ययन इन सर्वमान्य तथ्यों के संदर्भ में किया जाता है तो कोई नई प्रस्थापना नहीं की जा सकती। हमारा । दृष्टिकोण अभेद के साथ-साथ भेद को खोजने का होता है तो कई नए तथ्य सामने आ सकते हैं। आकाशवाणी की योजना
आचार्यश्री दिल्ली में विराज रहे थे। आकाशवाणी, दिल्ली के अधिकारी आए। आचार्यश्री से प्रार्थना की-हम आपका कुछ समय आकाशवाणी के लिए चाहते हैं। इस निवेदन का कारण बताते हुए उन्होंने कहा-हमारे विभाग की योजना है-दुनिया के जो महापुरुष हैं, महान् संत हैं, उनके जीवन एवं विचारों का संग्रह किया जाए। इस दृष्टि से हमने अनेक महापरुषों के जीवन और दर्शन का रिकार्ड किया है। आप भी भारत के एक महान् संत हैं। हम चाहते हैं-आपका जीवन-दर्शन और चिन्तन आपकी भाषा में सुरक्षित रहे इसलिए हमें आपका समय चाहिए। सैंकड़ों वर्ष बाद भी कोई व्यक्ति जिज्ञासा करे-अमुक व्यक्ति कौन था? उसके विचार क्या थे? उसका चिन्तन और दर्शन क्या था? उसकी इस जिज्ञासा का समाधान हमारे रिकार्ड में सुरक्षित मिलेगा। पूरी विचारधारा और जीवन-दर्शन संगृहीत रहता है। उसके बारे में कभी भी कुछ जाना जा सकता है, उसी व्यक्ति की आवाज में उसके विचार एवं दर्शन को सुना जा सकता है, विचार एवं दर्शन के क्षेत्र में दिए गए नए अवदान का मूल्यांकन किया जा सकता है।
हमने उनकी बात मान ली और उनकी जिज्ञासाओं को समाहित करने का प्रयत्न किया। विशिष्टता का बोध : भेद की खोज
वैज्ञानिक जगत् यह मानता है-हम जो कुछ भी बोलते हैं, वह सब आकाशिक रिकार्ड में अंकित हो जाता है। जैन आगमों में कहा गया है-मनःपर्यव ज्ञानी लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व के विचारों को पढ़ लेता है, जान लेता है। आकाश में भाषावर्गणा और मनोवर्गणा के पुद्गल बराबर बने रहते हैं, इसलिए उन्हें पढ़ा जा सकता है। व्यक्ति की आकृति को भी
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