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भेद में छिपा अभेद
स्वीकृत सिद्धान्तों तथा परसमय - अन्य दार्शनिकों के सिद्धान्तों का जानकार होना चाहिए। यदि आचार्य परसमय को नहीं जानता है तो समस्या प्रस्तुत हो जाती है। कोई व्यक्ति परसमय-दूसरों के सिद्धांत का प्रश्न पूछ ले और आचार्य उसका समाधान न दे सके तो अच्छा नहीं लगता। भगवान् महावीर ने परसमय का बहुत प्रयोग किया है। स्थान-स्थान पर दूसरों के सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया है। कथा का एक प्रकार है-पहले परसमय का प्रतिपादन करना और उसके बाद स्वममय-अपने सिद्धान्त की स्थापना करना। यह प्रकार भी बहुत महत्त्वपूर्ण है। विषय तुलनात्मक अध्ययन का
हम उत्तराध्ययन को पढ़ें, धम्मपद को पढ़ें तो बहुत सारी बातें समान मिलेंगी। बुद्ध ने अनित्यता का प्रतिपादन किया। महावीर ने भी अनित्यता के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। बारह अनुप्रेक्षाओं में एक अनुप्रेक्षा है-अनित्य अनुप्रेक्षा। उत्तराध्ययन में कहा गया- जन्म दुःख है, रोग दुःख है, बुढ़ापा और मृत्यु दुःख है। धम्मपद भी यही कहता है। ये समान बातें हैं। इनमें हमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
प्रत्येक घर में प्रतिदिन जो भोजना बनता है, वह सामान्य भोजन होता है। प्रत्येक घर में फुलका बनता है, साग-सब्जी बनती है, रोटी बनती है। यह एक सामान्य परंपरा है। इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है किंतु जब कोई विशेष अवसर होता है, घर में फंक्शन होता है तब पकवान बनते हैं, तरह-तरह की मिठाइयां बनती हैं। अनेक लोगों को आमंत्रित किया जाता है। जब सामान्य भोजन बनता है तब दूसरे लोगों को भोजन पर नहीं बुलाया जाता। जब विशिष्ट भोजन बनता है तब अतिथियों को बलाया जाता है या जब कोई अतिथि आता है तब विशेष प्रकार का भोजन बनता है। सामान्यतया हर घर में प्रतिदिन दाल-रोटी बनती है। प्रत्येक आदमी कहता है-बस, दाल-रोटी चाहिए। दाल-रोटी मिल गई तो सब कछ मिल गया। हमें दाल-रोटी में ही संतोष है।
हर धर्म की दाल-रोटी है-अहिंसा और सत्य। किसी को मत मारो, किसी को मत सताओ, झूठ मत बोलो। प्रत्येक धर्म यह बात कहता है
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