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अलगाव कहां है?
सब धर्म समान हैं, यह स्वर निरंतर सुना जाता है । जब आचार्यवर ने अणुव्रत की अचार संहिता प्रस्तुत की तब सनातन धर्म के लोगों ने कहा
यह तो हमारी आचार संहिता है । ईसाई धर्म के अनुयायियों ने कहायह हमारी आचार-संहिता है और मुस्लिम भाइयों ने कहा- यह हमारी आचार संहिता है । सब धर्मों के लोगों ने इस आचार संहिता को अपनाया, स्वीकार किया और इस दृष्टि से स्वीकार किया कि यह हमारी ही आचार संहिता है।
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भेद में छिपा अभेद
प्रश्न होता है- जब अहिंसा, सत्य आदि का प्रत्येक धर्म में समान मूल्य है तो इतने धर्म क्यों ? जब सब धर्म इन बातों को समान रूप से स्वीकार करते हैं तो धर्मों में अलगाव की बात क्यों? सब धर्म एक क्यों नहीं हो जाते? जब तुलनात्मक अध्ययन करते हैं तब यह प्रश्न प्रस्तुत होता है - अलगाव कहां है? यह प्रश्न नहीं होता - समानता कहां है? किन्तु यह प्रश्न सामने आता है-भेद कहां है? प्रश्न भेद का है, समानता का नहीं । अहिंसा आदि तत्त्व समान हैं, यह आश्चर्य की बात नहीं है । आश्चर्य की बात है भेद का होना । जो मनीषी व्यक्ति हैं, वे भेद को खोजें, आश्चर्य को खोजें।
अहिंसादीनि तत्त्वानि, समानानि न विस्मयः । विशेषो विस्मयस्थानं, सोऽन्वेष्टव्यो मनीषिणा । ।
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प्रश्न है पहुंच का
एक विद्वान् व्यक्ति का काम क्या है ? वस्तुतः तुलना करना, समानता खोजना बहुत महत्त्व का काम नहीं है । समानता के तत्त्व बहुत हैं, उन्हें आसानी से खोजा जा सकता है किंतु भेद को खोजना बहुत महत्त्व की बात है । एक मनीषी व्यक्ति के लिए करणीय है - भेद की खोज । यह बात असंगत लग सकती है, किंतु है बहुत महत्त्वपूर्ण । अभेद को खोजना कोई. नई बात नहीं है, कोई विशेष बात नहीं है। जहां सत्य की खोज होगी, वहां अभेद तो होगा ही। पर खोजना है भेद को | यह भेद या विशेष ही आश्चर्य का कारण है। मनीषी व्यक्ति यह खोजे - कौन व्यक्ति कहां तक पहुंचा है? महावीर सत्य की खोज में कहां तक पहुंचे ? बुद्ध सत्य की खोज में कहां
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