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________________ उत्तराध्ययन और धम्मपद एक बार कुएं की मुंडेर पर एक राजहंस आ बैठा । कुएं के अंदर एक मेंढक क्रीड़ा कर रहा था। उसने देखा - एक अजनबी पक्षी कुएं की मुंडेर पर बैठा है। मेंढक राजहंस को देखकर बोल उठा 1 रे पक्षिन्नागतस्त्वं कुत इह सरसस्तत् कियद् भो विशाल किं मद्धाम्नोपि बाढं न हि न हि महत् पाप मा ब्रूहि मिथ्या । इत्थं कुपोदरस्थः सपदि तटगतो दर्दरो राजहंस, नीचः स्वल्पेन गर्वी भवति हि विषयाः नापरे येन दृष्टाः । । कूपमण्डूकता मेंढक ने राजहंस से पूछा- तुम कौन हो ? कहां से आए हो? मैं राजहंस हूं, मानसरोवर से आया हूं। तुम्हारा मानसरोवर कितना विशाल है? बहुत विशाल है हमारा मानसरोवर । मेंढक ने एक छलांग लगाई, पूछा- क्या इतना बड़ा है ? नहीं, इससे बहुत बड़ा है। मेंढक ने एक लम्बी छलांग लगाई, क्या इतना बड़ा है ? नहीं, इससे भी बहुत बड़ा है। मेंढक ने पूरे कुएं की परिक्रमा की, क्या इतना बड़ा है ? नहीं, इससे भी बड़ा है। मेंढक ने कहा- तुम झूठ बोलते हो? तुम्हारी बात मिथ्या है। मेरे घर से बड़ा तुम्हारा मानसरोवर हो नहीं सकता। Jain Education International राजहंस ने सोचा- अब यहां ठहरना अच्छा नहीं है। जिसने कुएं को ही देखा है, बाहर की जो विशाल दुनिया है, उसका जिसे पता नहीं है, वह अपने घर को ही बड़ा मानेगा। उसके लिए दुनिया में उससे बड़ा कोई घर नहीं है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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