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आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी
अल्प हिंसा या हिंसा का अल्पीकरण
जो व्यक्ति अहिंसा पर विचारेगा, चिन्तन करेगा, लिखेगा, वह आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी पर पहले सोचेगा, चिन्तन करेगा । अहिंसा के संदर्भ में इन दोनों का तुलनात्मक अध्ययन करना जरूरी है। तेरापंथ में इस विषय पर काफी अध्ययन हुआ है। आचार्य भिक्षु के सामने प्रमुख सिद्धान्त था- अल्प आरंभ, अल्प परिग्रह और अल्प इच्छा का । समाज में
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रहने वाला प्राणी पूर्ण अहिंसा को नहीं अपना सकता पर उसे हिंसा का अल्पीकरण अवश्य करना चाहिए, परिग्रह और इच्छा का अल्पीकरण करना चाहिए। सर्वोदय के संदर्भ में एक प्रश्न आया । हमने आचार्य भिक्षु के सिद्धान्त के आधार पर लिखा- यह शब्द रचना ठीक नहीं है कि अल्प हिंसा वाला समाज अच्छा है। इसको इस प्रकार बदल दिया जाना चाहिए - समाज में हिंसा का अल्पीकरण अच्छा है । अल्प हिंसा, इस शब्द रचना में हिंसा का समर्थन है, 'हिंसा का अल्पीकरण' इस शब्दरचना में अहिंसा का समर्थन है। हिंसा का अल्पीकरण करना अहिंसा की दिशा में प्रस्थान है।
समस्या है केन्द्रीकरण
गांधीजी ने जो नीति अपनाई, वह तीन बातों पर आधारित थीविकेन्द्रित सत्ता, विकेन्द्रित अर्थनीति और विकेन्द्रित उद्योग। जहां सत्ता, अर्थ और उद्योगों का केन्द्रीकरण बढ़ता है वहां शोषण और अहिंसा को बढ़ावा मिलता है। यदि यह विकेन्द्रित अर्थनीति का सिद्धान्त आज देश में लागू होता तो गांव के लोग इतने पिछड़े और गरीब नहीं रहते । एक ओर तीन शब्द हैं - अल्प आरंभ, अल्प परिग्रह और अल्प इच्छा। दूसरी ओर तीन शब्द हैं- विकेन्द्रित अर्थव्यवस्था, विकेन्द्रित सत्ता और विकेन्द्रित उद्योग। हम इन दोनों शब्दों की अर्थ मीमांसा करें तो कहा जाएगा- ये दोनों अहिंसा की दिशा में प्रस्थान के पथ हैं। पर कहना यह चाहिएहिन्दुस्तान के लोगों ने न अचार्य भिक्षु को समझने का प्रयत्न किया, न महात्मा गांधी को समझने का प्रयत्न किया । इन्द्रिय चेतना और भोगवादी संस्कृति में पलने वाला आदमी इस बात को समझने का प्रयत्न करे, यह संभव भी नहीं लगता । यह अनिवार्यता कभी-कभी आती है । जब कभी
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