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भेद में छिपा अभेद
हिंसा तीव्र हो जाती है, तब व्यक्ति बाध्य होकर कभी-कभी अहिंसा के बारे में सोचता है। सहजतया आदमी इस संदर्भ में सोच ही नहीं पाता। व्यक्तित्व निर्माण का प्रश्न
हम आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी के संदर्भ में एक व्यावहारिक पहलू पर भी विमर्श करें। आचार्य भिक्षु व्यक्तित्व निर्माण में बहुत सजग थे। व्यक्तित्व का निर्माण वही कर सकता है, जो छोटी-छोटी बातों पर ध्यान देता है। हम महात्मा गांधी को देखें। एक ओर राजनीति के संचालन का दायित्व, आजादी के आन्दोलन को संचालित करने का दायित्व, दूसरी ओर सारा ध्यान केन्द्रित था सेवाग्राम और साबरमती पर। आश्रम में रहने वाले लोगों का जीवन कैसे चल रहा है? उनका चरित्र कैसा है? चरखा कैसे कातते हैं? जीवन-चर्या कैसी है? वे एक ओर राजनीति का नेतृत्व कर रहे थे तो दूसरी ओर नए व्यक्तित्व तैयार कर रहे थे, नए व्यक्तियों का निर्माण कर रहे थे। ध्यान दें छोटी बातों पर
आचार्य भिक्षु के परम शिष्य मुनिश्री हेमराजजी गोचरी गए, भिक्षा में दाल लेकर आए। आचार्य भिक्षु ने देखा, पात्र में उड़द, मूंग, चना आदि की दालें मिली हुई हैं। आचार्यश्री ने कहा- सब दालें मिलाकर क्यों लाए? मुनि हेमराजजी ने कहा- यह तो मिलता मेल है, पंचमिसाली दाल होती ही है। आचार्य भिक्षु ने कड़ा उलाहना दिया- कोई साधु बीमार है, उसे मंग की दाल ही देनी है और तं मिलाकर ले आया? मनि हेमराजजी खंटी तानकर सो गए। आहार का समय आया। सब साध बैठ गए पर हेमराजजी नहीं आए। संतों ने आचार्य भिक्षु से कहा- मुनि हेमराजजी सो रहे हैं। आचार्य भिक्षु बोले- हेमड़ा! दोष मेरा देख रहा है या अपना देख रहा है? तत्काल समाधान हो गया। वे भोजन करने के लिए प्रस्तुत हो गए।
आचार्य भिक्षु बहुत छोटी-सी बात पर भी ध्यान देते थे कि कहीं प्रमाद न हो। जो व्यक्ति छोटी बात पर ध्यान नहीं देता, वह किसी महान् व्यक्तित्व के निर्माण में सफल नहीं हो सकता। बांध में छोटा-सा छेद हो गया। यदि हम यह कहें- छोटा सा छेद हुआ है क्या फर्क पड़ेगा तो उसका
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