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भेद में छिपा अभेद
में यही अन्तर है। मत होता है माना हुआ और सत्य होता है जाना हुआ। अनुभव के क्षेत्र में कभी द्वैत नहीं रहता। प्रश्न धर्म की कसौटी का
गांधीजी ने सत्याग्रह, स्वावलंबन और व्रत-इन तीनों पर बहुत बल दिया। आचार्य भिक्षु के सामने व्रत के सिवाय कुछ नहीं था। उनके सामने धर्म की कसौटी थी-संयम, व्रत। आचार्य भिक्षु की भाषा है - जहां-जहां व्रत, वहां-वहां धर्म, जहां-जहां अव्रत वहां-वहां अधर्म। गांधीजी ने जो कसौटी प्रस्तुत की, वह इस कसौटी से कुछ भिन्न है। गांधीजी ने दो कसौटियां अपनाई-संयम और सुखवाद। जिससे समाज को सुख मिले, वह भी धर्म है इसीलिए उन्होंने सुखवादी धारणा को भी मूल्य दिया। बछड़ा तड़प रहा था। गांधीजी ने कह दिया - गोली मार दो। बेचारा दुःख पा रहा है, इसके दुःख को मिटा दो। यह सुखवादी दृष्टिकोण भी बराबर काम करता रहा है, इसीलिए सामाजिक कार्यों को धर्म के साथ जोड़ने में गांधी का जो योग रहा है, उसका कारण यह सुखवादी दृष्टिकोण रहा। कोई किसी को न मारे __ मैंने एक छोटी-सी पुस्तक लिखी - 'अहिंसा'। वह पुस्तक गांधीजी के पास पहुंची। उस पर गांधीजी ने अपने हाथ से कुछ टिप्पणियां लिखीं। गांधीजी ने लिखा - आचार्य भिक्षु कौन हैं ? अहिंसा की ऐसी व्याख्या मैंने आज तक कभी नहीं पढ़ी। उस पस्तक पर ऐसी पांच-सात टिप्पणियां थीं। पढ़कर ऐसा लगा - अहिंसा के प्रति वे बहुत जिज्ञासु थे। जब सर्वोदय कार्यकर्ता मिश्रीमलजी सराणा गांधीजी से मिले तब उन्होंने गांधीजी से आचार्य भिक्षु के सिद्धान्तों की चर्चा की। महादेवभाई देसाई और गांधीजी से हुई वह चर्चा बड़ी मार्मिक चर्चा है। प्रश्न आया - मांकण (खटमल) या बन्दर को मारने का प्रश्न आए, तो क्या करें? गांधीजी ने कहा - यदि ऐसा प्रसंग आया तो मैं अपने आपको इन दोनों से बचा लूंगा। मैं चाहूंगा कि कोई किसी को न मारे। आचार्य भिक्ष ने भी यही कहा - 'रांका नै मार धींगा नै पोखे' – बड़े-बड़े लोगों को पोखने के लिए गरीबों को सताया जा रहा है।
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