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________________ आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी हिंसा कर रहा है, उसका मानस बदल जाए तभी अहिंसा संभव है। आचार्य भिक्षु ने साध्य और साधन की शुद्धि के संदर्भ में कुछ महत्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे - आचार की चौपई, अनुकंपा की चौपई आदि। इन ग्रंथों में आचार्य भिक्षु ने साधन - शुद्धि की गंभीर और सूक्ष्म चर्चा की है। उन्होंने लिखा अशुद्ध साधनों से कभी भी शुद्ध साध्य को नहीं पाया जा सकता। यदि साधन अशुद्ध है तो साध्य भी अशुद्ध हो जाएगा। यदि इस परिप्रेक्ष्य में से हम आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी को निकाल दें तो मार्क्सवाद के सामने टिकने वाली इतनी स्पष्ट चर्चा शायद कहीं नहीं मिलेगी। इस कोण से देखें तो आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी एक बिन्दु पर आ जाते हैं। हिंसा हिंसा है १२५ गांधी के सामने एक प्रश्न आया - किसान बन्दरों को खेती से भगाते हैं और कभी मार डालते हैं । आप उसे क्या कहेंगे? अगर न भगाएं तो खेती का नुकसान होता है। गांधी ने कहा बन्दरों को भगाना या मारना अनिवार्य हिंसा मानकर क्षम्य भले ही माना जाये पर वह अहिंसा तीन काल में भी नहीं हो सकती। गांधीजी ने स्पष्ट कहा - तीन काल में हिंसा हिंसा ही रहेगी। हम उसे इस आधार पर क्षम्य भले ही मान लें कि इसके बिना समाज का काम नहीं चल सकता। आचार्य भिक्षु ने यही स्वर सामने रखा था पर उसका काफी विरोधी हुआ । आचार्य भिक्षु ने कहा अनिवार्य हिंसा भी हिंसा है। चाहे युद्ध करना पड़े, जीवन को चलाने के लिए हिंसा करनी पड़े, खेती को बचाने के लिए हिंसा करनी पड़े। अपरिहार्य कोटि की जितनी हिंसा है, वह सारी की सारी हिंसा ही है, उसे अहिंसा कभी नहीं कहा जा सकता । समान चिन्तन Jain Education International - महात्मा गांधी और आचार्य भिक्षु दोनों के चिन्तन और शब्दावली में कोई अन्तर नहीं है। ऐसा लगता है आचार्य भिक्षु की शब्दावली का प्रयोग गांधी ने किया और गांधी की शब्दावली का प्रयोग आचार्य भिक्षु ने . किया । वस्तुतः जो बात प्रज्ञा में से निकलेगी, उसमें मतद्वैत नहीं होगा । बौद्धिकता में मतद्वैत होता है। जहां मत है वहां द्वैत भी होगा किन्तु जहां मत नहीं, सत्य है वहां कभी भी दो विचार हो नहीं सकते। मत और सत्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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