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भेद में छिपा अभेद
हरिभाऊ उपाध्याय का मत
हरिभाऊ उपाध्याय ने एक पुस्तक की समीक्षा में लिखा - "आचार्य भिक्ष और महात्मा गांधी के संदर्भ में भमिका-भेद को निकाल दें तो दोनों एक बिन्द पर आ जाते हैं। भमिका-भेद का अर्थ है - महात्मा गांधी राजनीति के क्षेत्र में काम कर रहे थे और साथ में अहिंसा की नीति को अपनाए हुए थे। अहिंसा उनके लिए एक नीति नहीं, एक धर्म था। गांधीजी ने लिखा है-अहिंसा कांग्रेस के लिए एक नीति हो सकती है पर मेरे लिए वह एक धर्म है। आचार्य भिक्ष का क्षेत्र कोरा अध्यात्म का क्षेत्र था इसलिए उनके समक्ष अहिंसा धर्म ही था, यह निर्विवाद है। साधन-शुद्धि का प्रश्न
आज मार्क्सवाद ने अहिंसा के संदर्भ में एक बहुत बड़ा प्रश्न उभारा है। मार्क्स ने कहा – साध्य को पाने के लिए अगर अच्छा साधन मिलता हो तो ऐसा साधन अपनाया जाए किन्तु अगर अच्छे साधन से साध्य न मिलता हो तो जैसे-तैसे अशद्ध साधन से भी साध्य को पा लेना चाहिए। अगर हमें 'शोषण को मिटाना है तो मजदूरों का शासन स्थापित करना होगा और यदि वह सीधी तरह से उपलब्ध न हो तो उसे हिंसा के द्वारा भी प्राप्त किया जा सकता है। राजनीति के क्षेत्र में भी एक प्रश्न खड़ा हो गया-साधन की शुद्धि और अशुद्धि का। गांधी का आग्रह था-साध्य और साधन – दोनों शुद्ध होने चाहिए। साम्यवाद का अभिमत बन गया-साधन अशद्ध हो तो भी चल सकता है। यह साध्य और साधन की चर्चा इस शताब्दी में बहुत लंबी चली। इसका यदि मल स्रोत खोजें तो वह आचार्य भिक्ष के दर्शन में मिलता है। हृदय परिवर्तन और अहिंसा
साधन-शुद्धि के इस प्रश्न को सबसे पहले आचार्य भिक्षु ने उठाया। उन्होंने कहा-शुद्ध साधन के बिना अहिंसा कभी नहीं हो सकती। साध्य अच्छा हो तो साधन भी शुद्ध होना चाहिए। बल-प्रयोग से अहिंसा नहीं हो सकती। हृदय परिवर्तन के बिना अहिंसा नहीं हो सकती। प्रलोभन और बल-प्रयोग-ये दोनों हिंसा को मिटा सकते हैं पर अहिंसा को नहीं ला सकते। अहिंसा के लिए एक मात्र साधन है हृदय परिवर्तन। जो व्यक्ति
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