________________
आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी
हिंसा और अहिंसा शब्द कब सामने आए? यह इतिहास की खोज का विषय है। हिंसा और अहिंसा की प्रवृत्ति प्रारम्भ से ही चली आ रही है। दो परंपराएं बन गईं-हिंसा की परंपरा और अहिंसा की परम्परा। समाज में कुछ लोग ऐसे हुए हैं, जिन्होंने हिंसा का भी समर्थन किया है। युद्ध और शस्त्रों के बारे में बहुत विशद विवेचन किया गया है और उनके उपाय भी सुझाये गए हैं। दूसरी ओर ऐसे भी लोग हुए हैं, जिन्होंने युद्ध-वर्जन, निःशस्त्रीकरण एवं हिंसा के विरोध के लिए अतिसूक्ष्म चिंतन प्रस्तुत किया
अहिंसा के विचारक
अहिंसा का सिद्धान्त बौद्धिकता पर नहीं, अन्तर्दृष्टि पर आधारित है। अन्तर्दृष्टि जागे बिना अहिंसा की बात भी समझ में नहीं आ सकती, उसका विकास भी संभव नहीं है। यह सारा इन्द्रिय चेतना से परे का विषय है।
अहिंसा की परंपरा में अनेक बड़े-बड़े साधक और महात्मा हुए हैं। इन दो शताब्दियों में अहिंसा के दो विशिष्ट विचारक, चिन्तक, या तत्त्ववेत्ता हुए हैं। एक हैं आचार्य भिक्षु और दूसरे हैं महात्मा गांधी। आचार्य भिक्षु राजस्थान में जन्में और महात्मा गांधी गुजरात में। आचार्य भिक्षु जैन धर्म के संस्कारों में पले-पुषे और महात्मा गांधी वैष्णव धर्म के संस्कारों में। आचार्य भिक्षु और महात्मा गांधी दोनों ही वैश्य थे। दोनों की बुद्धि और पहुंच बहुत तीव्र थी। आचार्य भिक्षु ने अहिंसा के बारे में जितना लिखा, उतना शायद एक हजार वर्षों में भी किसी ने नहीं लिखा होगा। दूसरी ओर गांधी ने भी जितना अहिंसा पर काम किया, उतना आचार्य भिक्ष को 'छोड़कर शायद और किसी ने नहीं किया होगा। दोनों के कार्य-क्षेत्र भिन्न हो सकते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org