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भेद में छिपा अभेद
अमुक-अमुक शब्द मिलकर किस प्रकार का प्रकंपन पैदा करेंगे, इस आधार पर शब्द संरचना संगठित होती है। सारी ध्वनि-चिकित्सा प्रकंपनों के आधार पर चलती है । प्रेक्षाध्यान के सन्दर्भ में भी ध्वनि - चिकित्सा के बहुत से प्रयोग किए गए हैं। जहां हजार दवाइयां काम नहीं करतीं वहां एक शब्द काम कर जाता है।
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भावातीत ध्यान : अनुप्रेक्षा
शब्दों का गठन, प्रकंपन और भावना - तीन का योग बनता है और जप शुरू हो जाता है, व्यक्ति भावातीत स्थिति में चला जाता है। प्रेक्षाध्यान में जप अनुप्रेक्षा के साथ चलता है। अनुप्रेक्षा स्वाध्याय का एक प्रकार है। स्वाध्याय ध्यान का आदि सोपान है। ध्यान और अनुप्रेक्षा का योग है। प्रेक्षा में जो सचाइयां मिलती हैं, उनको जीवनगत बनाना है तो आवृत्तियां करनी होंगी। आवृत्ति करते रहने से मन पर उसका संस्कार होना शुरू हो जाएगा। शब्द की महिमा का प्रभाव हमारे भीतर तक पैठा हुआ है। हम सारे अर्थों को शब्द के माध्यम से ही जान रहे हैं। इसलिए शब्द- शक्ति से जुड़े प्रयोग महत्वपूर्ण बन जाते हैं। मन्त्र जप की साधना के सन्दर्भ में प्रेक्षाध्यान की एक पद्धति अनुप्रेक्षा और भावातीत ध्यान - दोनों की एक दृष्टि से तुलना कर सकते हैं।
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