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प्रेक्षा और विपश्यना
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विशेष प्रयोग आदि-आदि प्रेक्षाध्यान के अपने मौलिक अवदान हैं। एक प्रेक्षाध्यान शिविर में अनेक प्रयोग कराए जाते हैं। केवल लेश्याध्यान के पचासों प्रयोग विकसित किए जा चुके हैं। विभिन्न चैतन्य केन्द्रों पर विभिन्न रंगों के साथ प्रेक्षा के जो प्रयोग विकसित हुए हैं, वे किसी भी पद्धति में प्रचलित नहीं हैं, प्राप्त नहीं हैं। सन्दर्भ : स्वाध्याय और जप
यह एक सचाई है-सब व्यक्तियों की रुचि एक समान नहीं होती, क्षमता एक समान नहीं होती। बहुत सारे लोग ऐसे होते हैं, जो ध्यान को, पकड़ ही नहीं पाते। उन्हें प्रारम्भ में जप का प्रयोग करवाया जाता है। जो जप को पकड़ लेता है, वह ध्यान में चला जाता है। प्रेक्षाध्यान में जप को पर्याप्त महत्त्व दिया गया है। विपश्यना में मंत्र का जप और स्वाध्याय करना निषिद्ध है। प्रेक्षाध्यान में स्वाध्याय का महत्त्व भी स्वीकृत है। आसन-प्राणायाम, जप आदि से साधना का क्रम शुरू होना चाहिए। यह. साधना का आदि-चरण है। साधना का अग्रिम चरण है-चैतन्य केन्द्र प्रेक्षा और लेश्याध्यान। सन्दर्भः अनुप्रेक्षा
प्रेक्षाध्यान का सहवर्ती प्रयोग है-अनुप्रेक्षा। अनुप्रेक्षा के सारे प्रयोग चिन्तन के प्रयोग हैं। ध्यान में चिंतन का समावेश होना भी जरूरी है। विचय ध्यान की पूरी प्रक्रिया चिन्तनात्मक ध्यान की प्रक्रिया है। जो बदलाव चाहते हैं, उनके लिए अनुप्रेक्षा और संकल्प का प्रयोग करना जरूरी है। पश्चिमी वैज्ञानिक सजेशन और ऑटो-सजेशन के प्रयोग करवाते हैं। शिक्षा के क्षेत्र में वे प्रयोग काफी सफल हुए हैं। अनुप्रेक्षा के प्रयोग सजेस्टोलॉजी के प्रयोग हैं। यह सुझाव के द्वारा आदतों में परिवर्तन लाने की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। प्रेक्षाध्यान का यह विशिष्ट प्रयोग है। अपना-अपना दृष्टिकोण
प्रेक्षाध्यान पद्धति का समग्र आकलन करने पर जो निष्कर्ष प्रस्तुत होता है, वह यह है-प्रेक्षाध्यान एक सर्वांगीण और समृद्ध पद्धति है। यह किसी भी पद्धति का अनुकरण नहीं है। कभी-कभी प्रेक्षाध्यान पद्धति की समालोचना करते हुए कहा जाता है-कुछ इधर से ले लिया, कुछ उधर से
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