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प्रेक्षा और विपश्यना
प्रेक्षा ध्यान का उद्देश्य है
आत्मा का साक्षात्कार, आत्म-दर्शन । मन की शांति, शारीरिक स्वास्थ्य और तनाव विसर्जन - ये प्रेक्षा ध्यान के परिणाम हैं। उसका मूल उद्देश्य है - चित्त की निर्मलता और आत्मा की अनुभूति ।
ध्यान की दो प्रणालियां
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आज ध्यान की बहुत सारी प्रणालियां प्रचलित हैं । प्रेक्षा ध्यान की प्रणाली उन सबसे कुछ भिन्न है। ध्यान की एक प्रणाली है विपश्यना । यह बौद्ध-ध्यान की प्रणाली है। प्रेक्षा जैन साधना की प्रणाली है। प्रेक्षा के प्रयोग भी चलते हैं, विपश्यना के प्रयोग भी चलते हैं । प्रेक्षा और विपश्यना- इन दोनों शब्दों का अर्थ एक है- देखना । लेकन इनकी पद्धति और दर्शन एक नहीं है । विपश्यना ध्यान पद्धति का प्रयोग करने वाली एक बहिन ने कहा 'महाराज ! मैं विपश्यना के प्रयोगों में जाती हूं। विपश्यना में और सब कुछ ठीक है, उससे मन की शांति भी मिलती है पर उसमें आत्मा की बात नहीं है, आत्म-साक्षात्कार की बात नहीं है । ' विपश्यना में आत्मा की बात हो भी नहीं सकती क्योंकि जो बौद्धों की प्रणाली है, उसमें आत्मा की बात कैसे होगी ? बुद्ध ने आत्मा को अव्याकृत कहा है। यह मूलभूत अन्तर है प्रेक्षा और विपश्यना में। यह एक ऐसा बिन्दु है, जिससे प्रेक्षा और विपश्यना के आधारभूत अन्तर को समझा जा सकता है।
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विपश्यना : दार्शनिक आधार
अनेक लोग कहते हैं - विपश्यना में आनापानसती और काय-विपश्यना का प्रयोग चलता है और प्रेक्षा ध्यान में भी श्वास प्रेक्षा और शरीर प्रेक्षा के प्रयोग हैं। इन दोनों में अन्तर क्या है ?
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