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ध्यान की विभिन्न धाराएं
ईसा की छठी शताब्दी में बोधिधर्म नाम के एक भिक्षु हुए। उन्होंने ध्यान संप्रदाय की स्थापना की। वह ध्यान संप्रदाय कोरिया और जापान में भी फैला। भगवान बुद्ध ने अपने अगोचर सत्य और परम शुद्ध ज्ञान को महाकाश्यप के मन में संप्रेषित किया। महाकाश्यप ने वह ज्ञान आनंद के मन में संप्रेषित किया। बुद्ध परंपरा के अनुसार बुद्ध कै उद्गम निकलकर ध्यान - सम्प्रदाय के ज्ञान की यह धारा क्रमशः महाकाश्यप और आनन्द में होकर गुरु-शिष्य क्रम से निरन्तर बहती चली गई और भारत में बोधिधर्म इसके अट्ठाईसवें और अन्तिम गुरु हुए। ध्यान सम्प्रदाय के इतिहास -ग्रन्थों में इन अट्ठाईस धर्माचार्यों के नाम सुरक्षित हैं, जो महाकाश्यप से आरम्भ कर इस प्रकार हैं
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१. महाकाश्यप
२. आनन्द
३. शाणवास
४. उपगुप्त
५. धृतक ६. मिच्छक
७. वस्मित्र
८. बुद्धनन्दी
९. बुद्धमित्र १०. भिक्षु पार्श्व
११. पुण्ययशस् १२. अश्वघो
१३. भिक्षु कपिमाल
१४. नागार्जुन
१५. काणदेव
१६. आर्यराहुलक
१७. संघनन्दी
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१८. संघयशस्
१९. कुमारिल
२०. जयंत
२१. वसुबन्धु
२२. मनुर २३. हक्लेनयशस्
( या केवल हक्लेन)
२४. भिक्षु सिंह
२५. वाशसित
२६. प्रज्ञातर
२७. पुण्यमित्र
२८. बोधिधर्म
इस धारा के अनुसार बोधिधर्म अट्ठाईसवें और अन्तिम धर्मनायक हैं और वे चीन में ध्यान संप्रदाय के प्रथम धर्म नायक हुए हैं। 1
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ईसा की छठी शताब्दी में ही बौद्ध धर्म की तंत्र शाखा का विकास हुआ । यह धीमें-धीमें बुद्ध के मार्ग से दूर हटती गई । इसने इन्द्रिय भोग का समर्थन शुरू कर दिया। ध्यान के स्थान पर मंत्र का जप प्रधान बन गया।
1. ध्यान संप्रदाय डा० भरतसिंह उपाध्याय, पृष्ठ १३-१४1.
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