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________________ १०० भेद में छिपा अभेद हठ योग हठ योग तंत्रशास्त्र, शैव साधना पद्धति और पातंजल योग-दर्शन से प्रभावित है। गोरक्ष पद्धति में योग के छ: अंग बतलाए गए - आसन, प्राण-संरोध, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि।। हठयोग प्रदीपिका में राजयोग के लिए हठविद्या की आवश्यकता बतलाई गई है। हठविद्या का मूल नाथ-साधना पद्धति है। उसमें नाथ संप्रदाय की परंपरा दी गई है। उस परंपरा में आदिनाथ प्रथम हैं। दूसरा स्थान मत्स्येन्द्रनाथ का है। हठयोग प्रदीपिका में आसन को प्रथम स्थान दिया गया है। हठयोग में षट्कर्म, बंध, मुद्रा आदि का विकास हुआ है। नाथ संप्रदाय नाथ संप्रदाय को कुछ विद्वान बौद्ध परंपरा से अनुस्यूत मानते हैं। कुछ विद्वान् नाथ संप्रदाय का संबंध जैन परंपरा से जोड़ते हैं। अब यह सिद्ध हो गया है कि नेमिनाथ की भारतीय लोक जीवन में गहरी पैठ थी, यह तथ्य गोरखपंथियों में अन्तर्भुक्त 'नीमनाथी' संप्रदाय से भी सिद्ध होता है। इस संदर्भ में सन्त परम्परा में प्रचलित 'सद्गुरु' शब्द है, यह जैनियों का शब्द है। इसका उनके अलावा और कहीं प्रयोग नहीं मिलता। जैन कवियों ने इसका प्रयोग किया है। हरिवंश-पुराण में भीलों के श्रावक व्रत ग्रहण करने के वर्णन भी आए हैं। नेपाल के 'पेन-पो' संप्रदाय पर अनुसंधान होने से भी पार्श्वनाथ के जीवन पर नया प्रकाश पड़ सकता है। 'पेन-पो' पश्चिम नेपाल का एक 1. गोरक्ष पद्धति १/७ आसनं प्राण-संरोधः प्रत्याहारश्च धारणा।। ध्यानं समाधि एतानि योगांशानि वदन्ति षट्।। 2. हठयोग प्रदीपिका १/२ प्रणम्य श्री गुरु नाथं, स्वात्मारामेण योगिना। . केवलं राजयोगाय, हठविद्योपदिश्यते।। 3. हठयोग प्रदीपिका १/४ हठविद्यां हि मत्स्येन्द्रगोरक्षाया विजानते। स्वात्मारामोऽथवा योगी जानीते तत्प्रसादतः।। . 4. हठयोग प्रदीपिका १/५ श्री आदिनाथ मत्स्येन्द्रशावरानंदभैरवः । 5. हठयोग प्रदीपिका १/१७ हठस्य प्रथमांगत्वादासनं पूर्वमुच्यते। कुर्यात्तदासन स्थैर्यमारोग्य चांगलाघवम्।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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