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________________ ९८ बन गया। तंत्र के प्रभाव से जैन परंपरा भी अस्पृष्ट नहीं रह सकी। जैन आचार्यों ने भी तंत्र पर विशाल साहित्य रचा। चक्र और कुण्डलिनी चक्र और कुण्डलिनी - ये ध्यान के बहुत महत्त्वपूर्ण प्रयोग हैं। जैन ध्यान पद्धति में इनका समावेश प्राचीन काल से रहा है। नाम भेद के कारण उसका आकलन नहीं किया जा सका। आगम साहित्य तथा उत्तरवर्ती प्राचीन साहित्य में चक्र पद्धति का विशद वर्णन मिलता है ।। जैन साहित्य में तेजोलब्धि का अनेक स्थलों में निरूपण हुआ है। यह तंत्रशास्त्र और हठयोग के ग्रंथों में निरूपित कुण्डलिनी है। जैन परम्परा के प्राचीन साहित्य में कुण्डलिनी शब्द का प्रयोग नहीं. मिलता। उत्तरवर्ती साहित्य में इसका प्रयोग मिलता है। वह तंत्रशास्त्र और हठयोग का प्रभाव है। आगम और उसके व्याख्या साहित्य में कुण्डलिनी का नाम तेजोलेश्या है। इसे इस प्रकार भी कहा जा सकता है कि हठयोग में कुंडलिनी का जो वर्णन है, उसकी तुलना तेजोलेश्या से की जा सकती है। अग्निज्वाला के समान लाल वर्ण वाले पुद्गलों के योग से होने वाली चैतन्य की परिणति का नाम तेजोलेश्या है। यह तप की विभूति से होने वाली तेजस्विता है। 2 भद में छिपा अभद शैव परंपरा शैव परंपरा में विज्ञान भैरव बहुत महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है। उसमें ध्यान की सौ से अधिक पद्धतियां बतलाई गई हैं। उसके अनुभवी साधक कम मिलते हैं पर संकलन की दृष्टि से निश्चत ही वह विशिष्ट ग्रंथ है। बौद्ध ध्यान प्रणाली भगवान् बुद्ध ध्यान प्रधान साधक थे। उन्होंने ध्यान पर अत्यधिक बल दिया। उन्होंने आनापानसती और विपश्यना के विशेष प्रयोग किए। - 1. मनन और मूल्याकन ( युवाचार्य महाप्रज्ञ) पृष्ठ ७८-८४/ १. जैन योग (युवाचार्य महाप्रज्ञ) पृष्ठ- १५३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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