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ध्यान की विभिन्न धाराएं
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था। वह ई. पू. १८५ में अपने सेनापति पुष्यमित्र द्वारा मारा गया था । महर्षि पतंजलि पुष्यमित्र के समकालीन थे। इस तथ्य के आधार पर उनका अस्तित्व काल ई. पू. दूसरी शताब्दी है। बौद्ध दर्शन का साधनामार्ग अभिधम्मकोष ( ई. सन् पांचवी शताब्दी) और विशुद्धिमग्ग ( ई. सन् पांचवी शताब्दी) में उपलब्ध है। आचारांग ई. पू. पांचवीं शताब्दी की रचना है।
ध्यान: प्रतिनिधि ग्रंथ
पातजल योग दर्शन सांख्य सम्मत ध्यान पद्धति का प्रातानधि ग्रंथ है। अभिधम्म कोश और विशुद्धिमग्ग बौद्ध सम्मत ध्यानपद्धति के आधारभूत ग्रन्थ हैं। आचारांग जैन साधना पद्धति और ध्यान पद्धति का मौलिक ग्रंथ है। भगवान पार्श्व ध्यान पद्धति के उन्नायक थे । उनकी ध्यानपद्धति जैन शासन और बौद्ध-शासन - दोनों में संक्रान्त हुई है । विपश्यना ध्यान आचारांग और विशुद्धिमग्ग- दोनों में उपलब्ध है।
सांख्य साधना पद्धति.
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महर्षि पतंजलि के योगदर्शन में योग की व्यवस्थित पद्धति भी निरूपित है । उसकी अष्टांग योग प्रणाली में योग बहिरंग और अंतरंग इन दो भागों में विभक्त किया गया। यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार ये बहिरंग योग हैं। धारणा, ध्यान और समाधि – ये तीन अंतरंग योग हैं। यह स्वीकार करने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उपलब्ध ध्यान ग्रंथों में पातंजल योगदर्शन सर्वांगीण और सुव्यवस्थित ग्रंथ है। इसमें कुण्डलिनी योग और षट् चक्र का निरूपण नहीं है। बौद्ध ध्यान पद्धति में भी उनका वर्णन नहीं है। तंत्रशास्त्र नाथ साधना पद्धति और हठयोग में उनका निरूपण हुआ है।
तंत्र साधना
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भारत में तंत्र की परंपरा भी बहुत प्राचीन है । ईसा से पंद्रह सौ वर्ष पूर्व तंत्र विद्या भारत से बाहर जा चुकी थी । उत्तरकालीन बौद्धों ने तंत्र को बहुत महत्त्व दिया। बौद्ध तंत्र ने विपश्यना का स्थान ले लिया । तंत्र प्रधान 1. पातंजल योगदर्शन ३ / ७ त्रयमंतरंगे पूर्वेभ्यः ।
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