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भेद में छिपा अभेद
के लिए कुछ भी नहीं बताया गया। हमारे मन में बड़ा असंतोष रहता है। हम क्या करें? आप हमारे अपने जीवन के लिए कुछ बताएं? पादरी घंटों तक हमारे पास बैठे रहते, ज्ञान की बात पूछते, साधना विषयक जिज्ञासाएं करते, व्यक्तिगत साधना के लिए मार्गदर्शन लेते। व्यवहार और निश्चय
दोनों प्रश्न हमारे सामने हैं-व्यक्तिगत साधना का प्रश्न भी और समाज के साथ संपर्क का प्रश्न भी। निष्कर्ष की भाषा यह होगी-ये दोनों नय हैं। एक नय है व्यक्तिगत साधना का और दूसरा नय है अहिंसा के समाजीकरण का। दोनों अलग-अलग रहते हैं तो शायद दोनों में कठिनाई होती है। अगर दोनों का समाहार हो जाए तो समस्या सुलझ जाए। समाज के स्तर पर किस प्रकार समाज के व्यक्तियों का उत्थान हो सकता है? किस प्रकार सामाजिक समस्याओं का समाधान किया जा सकता है? यह है व्यवहार नय। अपना उत्थान कैसे हो, यह है निश्चय नय। यदि दोनों समानांतरं रेखा की भांति साथ-साथ चलें तो पर्णता की संभावना की जा सकती है। साझेदारी का अनुभव करें
ऐसा लगता है-प्रकृति को पूरी बात मान्य नहीं है। यदि एक ही धर्म सब काम करने लग जाए तो दूसरे क्या करेंगे। कार्य का एक सहज विभाजन हो गया। हम यह कल्पना न करें-जैन धर्म के हिस्से में निश्चय नय की बात आ गई, आत्म-साधना या मोक्ष का मार्ग आ गया और ईसाई धर्म के हिस्से में समाज सेवा करना, गरीबों का उत्थान करना आदि कार्य आ गया। हम यह मानें-यह साझेदारी का काम है। हालांकि जैन समाज वर्तमान में समाज सेवा के अनेक कार्यों में अग्रणी भूमिका निभा रहा है और अपने व्यापक आधार को पुनः उपलब्ध करने की दिशा में गति कर रहा है। ईसाई और जैन-दोनों भाई-भाई हैं। हमारी एक साझेदारी है। एक भाई को काम मिला है - आत्मतत्त्व के प्रमार का और दूसरे भाई को काम मिला है समाज सुधार का। परस्परता का भाव जागे हम भाईचारे का अनुभव करें, माझेदारी का अनुभव करें। ऐसा
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