________________
जैन धर्म और ईसाई धर्म
अहिंसा और प्रेम का समाजीकरण
निश्चय या शुष्क दर्शन की चर्चा सामान्य व्यक्ति को आकर्षित नहीं करती। वह आकर्षित होता है व्यवहार के आधार पर। ईसाई धर्म में अहिंसा, प्रेम या मैत्री का समाजीकरण है। ईसाई धर्म के व्यक्तियों ने अहिंसा को समाज में प्रतिबिम्बित किया है. समाज से जड़कर जीवन जिया है। समाज के साथ व्यवहार के धरातल पर प्रेम को कैसे जीया जाए, यह सूत्र ईसाई धर्म के सामने रहा है।
अल्बर्ट आइंस्टीन एक महान विचारक व्यक्ति थे। उन्होंने बद्ध, महावीर तथा भारतीय संतों पर काफी तुलनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। वे अफ्रीका के जंगलों में गए। ऐसे जंगल, जहां भयंकर मच्छर और जानवर होते हैं। उन जंगलों में आदमी का रह पाना मुश्किल था। वहां रहने वाले आदिवासी बहत खंखार होते थे। वे आदमी को भी खा जाते। आइंस्टीन वैसे जंगलों में झोंपड़ी बांधकर रहे। उन खूखार आदिवासियों के साथ प्रेम-भरा व्यवहार किया। धीरे-धीरे उनको समझाना शुरू किया, सभ्य बनाना शुरू किया। उनकी सेवा में रहे और तब तक उस कार्य में अहर्निश जुटे रहे, जब तक वह जाति सभ्य न बन गई। अपनी सेवा से आईंस्टीन ने आदिवासी जीवन जीने वाले व्यक्तियों को सभ्य आदमी की तरह रहना सिखा दिया। सेवा के क्षेत्र में आईंस्टीन दुनिया के प्रसिद्ध व्यक्ति बन गए। विश्व के बड़े से बड़े पुरस्कार आईंस्टीन को उपलब्ध हुए।
यह है अहिंसा, प्रेम और मैत्री का समाजीकरण। व्यक्तिगत साधना : सामाजिक संपर्क
हम केवल आदर्श की बात करें, व्यवहार के स्तर पर कुछ भी न करें तो वह बात कछ समझ में नहीं आती। ऐसा लगता है-जैन धर्म के लोग निश्चय नय के पक्ष पर ज्यादा चले गए। जो निश्चय के पक्ष पर जाएंगे, वे आत्म-साधना की बात भले ही कर लें वहां संख्या की बात नहीं होगी। वहां मोक्ष की बात होगी पर समाज को सुधारने की बात नहीं होगी।
आचार्यवर की केरल यात्रा में अनेक बार वर्च में रहने के अवसर आए। उन प्रवासों में अनेक पादरी और सिस्टर्स से वार्तालाप हुआ। उन्होंने कहा-हमें यह काम तो दिया गया कि सेवा करो किन्तु व्यक्तिगत साधना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org