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भेद में छिपा अभेद
लगा। जैसा लगा है, वैसा कहूंगा तो आपको अच्छा नहीं लगेगा। इसलिए मेरा मौन रहना ही अच्छा है।
बादशाह यह सुनकर स्तब्ध रह गया। जहां तत्त्व की बात होती है वहां भव्यतम प्रासाद की प्रशंसा नहीं होती। छोटी-मोटी बात का मूल्य ही क्या होगा? कोई भी धर्म या संप्रदाय तत्त्व के आधार पर व्यापक या आंकड़े वाली गणना नहीं बता सकता। जो संख्या का विस्तार हआ है या होता है, वह सामाजिक व्यवस्था, सौहार्द, प्रेम और सेवा के आधार पर हआ है। तत्त्व की गहराई में जाना बहत कठिन काम है। सामान्य आदमी तत्त्व की गहरी चर्चा को सुनना ही पसंद नहीं करता। ईसा के उपदेश
ईसा के जो उपदेश हैं, वे एक सामाजिक व्यक्ति के व्यवहार से सीधे जड़े हुए हैं। सामाजिक स्वास्थ्य की दृष्टि से ईसा की शिक्षाएं बहुत महत्त्वपूर्ण हैंकिसी की हत्या न करना। व्यभिचार न करना। चोरी न करना। झूठी गवाही न देना।
धन के लालच में न आना। लोभ सब बुराइयों की जड़ है। धन को न साथ लाए हैं और न साथ ले जाएंगे।
ईसा ने क्षमा धर्म पर भी बहुत बल दिया। पतरस ने पूछा-हे प्रभु! मेरा भाई अपराध करता रहे तो उसे कितनी बार क्षमा करूं? क्या सात बार तक क्षमा करूं?
ईसा ने कहा-सात बार ही क्यों? सात बार के सत्तर गुना तक उसे क्षमा
कर।
यह क्षमादान अपनत्व पैदा करता है। सामाजिक सौहार्द और विस्तार में क्षमा, उदारता, प्रेम, परस्परता जैसे गणों का विकास बहत उपयोगी होता है। ईसाई धर्म ने इन सबका व्यवहार के स्तर पर समाजीकरण किया है। उसके प्रति आकर्षण का यह प्रमुख कारण है।
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