SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जैन धर्म और ईसाई धर्म की बात में खोया रहता। जो व्यक्ति तत्त्व की गहराई में पहुंच जाता है, तत्त्व की ऊंचाई को छू लेता है, उसके सामने प्रशंसा करने की बात बहुत कम हो जाती है। प्रशंसा वही व्यक्ति ज्यादा करता है, जो तत्त्व की गहराई का स्पर्श नहीं करता। बादशाह की अभीप्सा हजारों - हजारों लोग महल की प्रशंसा कर रहे थे, पर बादशाह को संतोष नहीं हुआ। बादशाह ने सोचा-जिस दिन सोलन आकर प्रशंसा करेगा, उस दिन मानूंगा-वास्तव में ही महल सुन्दर और भव्य बना है। एक दिन बादशाह ने सोलन को बुलाया। सोलन बादशाह के सामने प्रस्तुत हो गया। बादशाह स्वयं सोलन को महल दिखाने के लिए तैयार हुआ। बादशाह सोलन के साथ पूरे महल में घूम रहा है, प्रत्येक कमरे की ओर संकेत करके बता रहा है-यह प्रासाद का मुख्य कक्ष है, यह डाइनिंग हाल है, यह सभा-कक्ष है, यह शयन-कक्ष है। आप देखिए-फर्श कितना बढ़िया है, शीशे जैसा चमक रहा है। महल की जितनी विशेषताएं थीं, बादशाह सोलन को बताता जा रहा था। सोलन ने एक शब्द भी प्रतिक्रिया में नहीं कहा। बादशाह ने सोचा-मैंने कितना श्रम किया; पसीना बहाया फिर भी यह मौन साधे हुए है। सोलन का जबाब पूरा महल देखने के बाद बादशाह और सोलन-दोनों बाहर आ गए। बादशाह का मन क्षोभ से भर गया-मेरा इतना अपमान! इतना तिरस्कार! इतने सुन्दर महल के लिए दो शब्द भी नहीं। बादशाह से रहा नहीं गया। वह प्रतिक्रिया जानने के लिए व्यग्र था। उसने कहा-महान् दार्शनिक सोलन! आपने मेरा महल देखा? हां, देख लिया। कैसा लगा? जैसा था, वैसा लगा। इतनी बढ़िया सामग्री! इतने बढ़िया कमरे! आपको कैसा लगा? कितना अच्छा लगा? महाराज! मैंने सारा देख लिया। इसमें प्रशंसा करने जैसा कुछ भी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003085
Book TitleBhed me Chipa Abhed
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2003
Total Pages162
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy