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जैन धर्म और ईसाई धर्म
माने-एक गुरु के दो शिष्य हैं। गुरु ने उन दोनों को दो अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने का दायित्व सौंप दिया है। दोनों शिष्य अपने अपने काम की पूर्ति में निष्ठा से लगे हुए हैं। गुरु के कार्य में दोनों की साझेदारी है।
तुलनात्मक अध्ययन का अर्थ है-साझेदारी का अनुभव करना। न हीनता और न उत्कर्ष। न तिरस्कार और न घृणा। किन्तु परस्परता-एक-दूसरे का पूरक होने का भाव। दुनिया के महान् साम्राज्य में रहने वाले सब लोग अपनी साझेदारी का, अपने पर आए हुए दायित्व का अनुभव करे तो बहुत अच्छा समन्वय सध जाए। न किसी का खण्डन और न किसी का मण्डन! न किसी का तिरस्कार और न किसी को पुरस्कार। सबका अपना अपना काम और अपना अपना योग। इस योग के आधार पर हम साझेदारी की भावना को आगे बढ़ाएं तो तुलनात्मक अध्ययन के संदर्भ में एक नया दृष्टिकोण उपलब्ध हो सकेगा।
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