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________________ भगवान महावीर रीढ़ है । कुछेक व्यक्ति सत्ता, अधिकार और पद से चिपककर बैठ जाएं, दूसरों को अवसर न दें तो असंतोष की ज्वाला भभक उठती है। यह सापेक्ष-नीति गुटबंदी को कम करने में काफी काम कर सकती है । नीतियां भिन्न होने पर भी यदि सापेक्षता हो तो अवांछ नीय अलगाव नहीं होता। महावीर ने जो किया, वह मुक्ति के लिए किया। उन्होंने जो कहा, वह मुक्ति के लिए कहा । जनतंत्र भी व्यावहारिक मुक्ति का प्रयोग है। इसलिए महावीर की करनी और कथनी दोनों में पथदर्शन की क्षमता है। मनुष्य की ईश्वरीय सत्ता का संगान भगवान् महावीर का जन्म उस युग में हुआ जिसमें मनुष्य भाग्य के झूले में झूल रहा था। भाग्य ईश्वरीय सत्ता का प्रतिनिधि तत्त्व है। जब मनुष्य ईश्वरोय सत्ता का यंत्र बनकर जीता है तब उसके जीवन-रथ का सारथि भाग्य ही होता है। भगवान् महावीर भाग्यवादी नहीं थे, इसका सहज फलित यह है कि वे चाल अर्थ में ईश्वरवादी नहीं थे। वे गणतंत्र के संस्कारों में पले-पूसे थे। वे किसी भी महासत्ता को अपनी सम्पूर्ण स्वतंत्रता सौंप देने के पक्ष में नहीं थे। उनकी अहिंसा की व्याख्या में अधिनायकवादी मनोवृत्ति के लिए कोई अवकाश नहीं था। भगवान् ने कहा-'दूसरों पर शासन करना हिंसा है, इसलिए किसी की स्वतंत्रता का अपहरण मत करो।' इस दुनिया में स्वतंत्रता का अपहरण होता है पर वह ईश्वरीय तत्त्व नहीं हो सकता। भगवान् महावीर आत्मवादी थे । वे ईश्वर के अस्तित्व का प्रतिपादन करते थे, किंतु उसकी मनुष्य से भिन्न सत्ता स्वीकार नहीं करते थे। मनुष्य ईश्वर की सष्टि है, ईश्वर उसका सर्जक है, यह कृति और कर्ता का सिद्धांत उन्हें स्वीकार्य नहीं था। उनकी स्थापना में आत्मा की तीन कक्षाएं हैं : १. बहिर्-आत्मा यह पहली कक्षा है । इसमें देह ही सब कुछ होता है। उसमें विराजमान चिन्मय आत्मा का अस्तित्व ज्ञात नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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