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जैन परम्परा का इतिहास
आत्मिक समानता की अनुभूति के बिना अहिंसा विफल हो जाती है । गणराज्य की विफलता का मूल हेतु है-विषमता।
महावीर का दूसरा सिद्धांत था-आत्म-निर्णय का अधिकार।
हमारे भाग्य का निर्णय किसी दूसरी सत्ता के हाथ में हो, वह हमारी सार्वभौम सत्ता के प्रतिकूल है-यह उन्होंने बताया। उन्होंने कहा-“दुःख और सुख दोनों तुम्हारी ही सृष्टि है। तुम्हीं अपने मित्र हो और तुम्हीं अपने शत्रु । यह निर्णय तुम्हीं को करना है, तुम क्या होना चाहते हो ? जनतंत्र के लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है । जहां व्यक्ति को आत्म-निर्णय का अधिकार नहीं होता, वहां उसका कर्तृत्व कुंठित हो जाता है। नव-निर्माण के लिए पुरुषार्थ और पुरुषार्थ के लिए आत्म-निर्णय का अधिकार आवश्यक है।
महावीर का तीसरा सिद्धांत था-आत्मानुशासन ।
उन्होंने कहा-दूसरों पर हुकूमत मत करो। हुकूमत करो अपने शरीर पर, अपनी वाणी पर और मन पर । आत्मा पर शासन करो, संयम के द्वारा, तपस्या के द्वारा । यह अच्छा नहीं होगा कि कोई व्यक्ति वध और बंधन के द्वारा तुम्हारे पर शासन करे ।
___जनतंत्र की सफलता आत्मानुशासन पर निर्भर है। बाहरी नियंत्रण जितना अधिक होता है, उतना ही जनतंत्र निस्तेज होता है । उसकी तेजस्विता इस बात पर निर्भर है कि देशवासी लोग अधिक से अधिक आत्मानुशासित हों। __ महावीर का चौथा सिद्धान्त था सापेक्षता।
उसका अर्थ है-सबको समान अवसर । बिलौना करते समय एक हाथ पीछे जाता है और दूसरा आगे आता है, फिर आगे वाला पीछे और पीछे वाला आगे जाता है। इस क्रम से नवनीत निकलता है, स्नेह मिलता है।
___ चलते समय एक पैर आगे बढ़ता है, दूसरा पीछे । फिर आगे वाला पीछे और पीछे वाला आगे आ जाता है। इस क्रम से गति होती है, आदमी आगे बढ़ता है।
यह सापेक्षता ही स्याद्वाद का रहस्य है। इसी के द्वारा सत्य का ज्ञान और उसका निरूपण होता है। यह सिद्धांत जनतंत्र की
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