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________________ भगवान् महावीर अक्लमंद और मूर्ख दोनों का ही मृत्यु के बाद उच्छेद हो जाता है। मृत्यु के बाद कुछ भी अवशेष नहीं रहता।" इस मत को उच्छेदवाद कहते हैं। ४. अन्योन्यवाद इस संघ का आचार्य पकूधकात्यायन था। उसका कहना था - 'सातों पदार्थ न किसी ने किए, न किसी से करवाए । वे वंध्य, कूटस्थ तथा खम्बे के समान अचल हैं। वे हिलते नहीं, बदलते नहीं आपस में कष्टदायक नहीं होते और एक-दूसरे को सुख-दुःख देने में असमर्थ हैं । पृथ्वी, आप, तेज, वायु, सुख, दुःख तथा जीव--ये ही सात पदार्थ हैं। इनमें मारने वाला, मार खाने वाला, सुनने वाला, कहने वाला, जानने वाला, जनाने वाला कोई नहीं । जो तेज शस्त्रों से दूसरे से दूसरे के सिर कटवाता है वह खून नहीं करता, सिर्फ उसका शस्त्र इन सात पदार्थों के अवकाश [रिक्त स्थान] में घुसता है, इतना ही।" इस मत को अन्योन्यवाद कहते हैं। ५. चातुर्याम संवरवाद इस संघ के आचार्य निग्गंथ नातपुत्र [तीर्थंकर महावीर] थे। ६. विक्षेपवाद ___ इस संघ का आचार्य संजयवेलट्टिपुत्र था। वह कहता था"परलोक है या नहीं, यह मैं नहीं समझता । परलोक है यह भी नहीं; परलोक नहीं है, यह भी नहीं। अच्छे या बुरे कर्मों का फल मिलता है, यह भी मैं नहीं मानता, नहीं मिलता यह भी मैं नहीं मानता। वह रहता भी है, नहीं भी रहता । तथागत मृत्यू के बाद रहता है या रहता नहीं, यह मैं नहीं समझता । वह रहता है, यह भी नहीं; वह नहीं रहता, यह भी नहीं। इस वाद को विक्षेपवाद कहते थे । महावार का धर्म और गणतन्त्र भगवान् महावीर वैशाली गणतन्त्र के वातावरण में पले-पुसे थे। वैशाली गणराज्य के प्रमुख महाराज चेटक भगवान् के मामा थे। भगवान के पिता सिद्धार्थ उस गणराज्य के एक सदस्य थे। भगवान के प्रारम्भिक संस्कार अहिंसा की व्याख्या में प्रतिफलित मिलते हैं। महावीर का पहला सिद्धांत था-समानता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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