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________________ ३६ जैन परम्परा का इतिहास श्रावक के गुण ___ अणुव्रतों का पालन करने वाला श्रद्धा-संपन्न व्यक्ति कहलाता है । उसके मुख्य गुण ये हैं १. ग्रहण किये हुए व्रतों का सम्यक् पालन करना। २. जहां बहुश्रुत साधार्मिक लोग हों, उस स्थान में आनाजाना। ३. बिना प्रयोजन दूसरों के घर न जाना। ४. चमकीला-भड़कीला वस्त्र न पहनना। सदा सादगीमय जीवन बिताना। ५. जुआ आदि कुव्यसनों का त्याग करना। ६. मीठी वाणी से काम चलाना। कठोर वचन नहीं कहना। ७. तप, नियम, वन्दना आदि धार्मिक अनुष्ठानों में सदा तत्पर रहना। ८. विनम्र रहना। कभी दुराग्रह नहीं करना। ६. जिनवाणी के प्रति अटूट श्रद्धावान् रहना। १०. ऋजु व्यवहार करना। मन की ऋजुता, वचन की ऋजुता और शरीर की ऋजुता रखना। ११. गुरु-वचन को सुनने के लिए तत्पर रहना । १२. प्रवचन या शास्त्रों की प्रवीणता प्राप्त करना। शिष्टाचार शिष्टाचार के प्रति जैन आचार्य बड़ी सूक्ष्मता से ध्यान देते हैं । वे आशातना को सर्वथा परिहार्य मानते हैं। किसी के प्रति अनुचित व्यवहार करना हिंसा है । आशातना हिंसा है। अभिमान भी हिंसा है। नम्रता का अर्थ है-कषाय-विजय । अभ्युत्थान, अभिवादन, प्रिय निमंत्रण, अभिमुखगमन, आसन-प्रदान, पहुंचाने के लिए जाना, हाथ जोड़ना आदि-आदि शिष्टाचार के अंग हैं। इनका विशद वर्णन उत्तराध्ययन के पहले और दशवैकालिक के नौवें अध्ययन में है। श्रावक व्यवहार-दृष्टि से दूसरे श्रावकों को भी नमस्कार करते हैं । धर्म-दृष्टि से उनके लिए वन्दनीय मुनि होते हैं । यह आध्यात्मिक और त्याग-प्रधान संस्कृति का एक संक्षिप्तसा रूप है। इसका सामाजिक जीवन पर भी प्रतिबिम्ब पड़ा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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