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________________ जैन परम्परा का इतिहास 'परीक्षित का राज्य-काल बुद्ध से तीन शताब्दियों से पूर्व नहीं जा सकता । परीक्षित के बाद जनमेजय गद्दी पर आया और उसने कुरू देश में महायज्ञ कर वैदिक धर्म का झण्डा फहराया। इसी समय काशी देश में पार्श्व एक नयी संस्कृति की नींव डाल रहे थे। पार्व का जन्म वाराणसी नगर में अश्वसेन नामक राजा की वामा नामक रानी से हुआ। ऐसी कथा जैन ग्रंथों में आयी है। पार्श्व की नयी संस्कृति काशी राज्य में अच्छी तरह टिकी रही होगी, क्योंकि बुद्ध को भी अपने पहले शिष्यों को खोजने के लिए वाराणसी ही जाना पड़ा था। पार्श्व का धर्म बिलकूल सीधा-सादा था। हिंसा, असत्य, स्तेय तथा परिग्रह इन चार बातों के त्याग करने का वे उपदेश देते थे। इतने प्राचीन काल मे अहिंसा को इतना सुसम्बद्ध रूप देने का यह पहला ही उदाहरण है। सिनाई पर्वत पर मोजेस को ईश्वर ने जो दस आज्ञाएं सूनाईं, उनमें हत्या मत करो, इसका भी समावेश था । पर उन आज्ञाओं को सुनकर मोजेस और उनके अनुयायी पैलेस्टाइन में घुसे और वहां खन की नदियां बहाईं। न जाने कितने लोगों को कत्ल किया ओर न जाने कितनी युवती स्त्रियों को पकड़कर कर आपस में बांट लिया। इन बातों को अहिंसा कहना हो तो फिर हिंसा किसे कहा जाए ? तात्पर्य यह है पार्श्व के पहले पृथ्वी पर सच्ची अहिंसा मे भरा हुआ धर्म या तत्त्व-ज्ञान था ही नहीं। पार्श्व मुनि ने एक और भी बात की। उन्होंने अहिंसा को सत्य, अस्तेय और अपरिग्रह- इन तीन नियमों के साथ जकड़ दिया। इस कारण पहले जो अहिंसा ऋषि-मुनियों के आचरण तक ही सीमित थी और जनता के व्यवहार में जिसका कोई स्थान न था, अब वह इन नियमों के सम्बन्ध से सामाजिक और व्यावहारिक हो गई। पार्श्व मुनि ने तीसरी बात यह की कि अपने नवीन धर्म के प्रचार के लिए उन्होंने संघ बनाए । बौद्ध साहित्य से इस बात का पता लगता है कि बुद्ध के समय जो संघ विद्यमान थे, उन सबों में जैन साधु और साध्वियों का संघ सबसे बड़ा था। पार्श्व के पहले ब्राह्मणों के बड़े-बड़े समूह थे, पर वे सिर्फ यज्ञयाग का प्रचार करने के लिए ही थे। यज्ञ-याग का तिरस्कार कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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