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________________ १२४ जैन परम्परा का इतिहास ५. आचार्य अभयदेव __ अभयदेव नाम के अनेक आचार्य हुए हैं । नवांगी टीकाकार के रूप में प्रसिद्ध आचार्य अभयदेव का जन्म धारानगरी में विक्रम सं० १०७२ में हुआ था। इनके पिता का नाम महीधर और माता का नाम धनदेवी था। इन्होंने बाल्यावस्था में आचार्य वर्द्धमानसूरि के पास दीक्षा ग्रहण की और सोलह वर्ष की अवस्था में ये आचार्य बन गए। एक दिन ये ध्यान कर रहे थे। इनके मन में आगमों पर टीकाएं लिखने का विचार आया। शासनदेवी ने इस कार्य के लिए इन्हें प्रेरित किया और ये आगमों पर टीका लिखने के लिए प्रस्तुत हो गए। टीका-रचनाकाल इन्होंने आचाम्ल [आयंबिल] तप करना प्रारम्भ किया। प्रतिदिन के आयंबिल ने इनके शरीर को कृश ही नहीं रोगग्रस्त भी बना डाला। इनके शरीर में सफेद कुष्ठ हो गया। लोगों में यह अपवाद फैला कि आगमों की उत्सूत्र प्ररूपणा के कारण शासनदेवी ने रुष्ट होकर इन्हें यह दण्ड दिया है। यह बात आचार्य अभयदेव ने सुनी। इनका मन तिलमिला उठा। धैर्य विचलित हुआ। शासनदेवी ने प्रकट होकर धीरज धारण करने की प्रेरणा दी। कुष्ठ रोग समाप्त हो गया । पुनः उसी उत्साह से कार्य चालू रखा और बहुत थोड़े समय में नौ अंगों की टीकाएं लिख कर ये सदा-सदा के लिए अमर हो गए। तिरेसठ वर्ष की अवस्था में वि० सम्वत् ११३५ में गुजरात के कपड़गंज गांव में इनका स्वर्गवास हुआ। ६. आचार्य हेमचंद्र इनका जन्म विक्रम सम्वत् ११४५ की कार्तिक पूर्णिमा के दिन गुजरात प्रान्त के धंधुका गांव में हुआ। इनका जन्म नाम 'चंगदेव' था। इनके पिता का नाम चाचदेव और माता का नाम पाहिनी था। ___ ये आचार्य देवचंद्रसूरि के पास दीक्षित हुए । इक्कीस वर्ष की अवस्था में ये आचार्य बने । महाराज सिद्धराज की प्रेरणा से इन्होंने सर्वांग परिपूर्ण व्याकरण का निर्माण किया, जो 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' के नाम से प्रसिद्ध है। इस व्याकरण से महाराज सिद्धराज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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