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________________ १०४ जैन परम्परा का इतिहास बीच-बीच में प्रभावशाली जैनाचार्य उसे उबुद्ध करते रहे। विक्रम की बारहवीं शताब्दी में गुजरात का वातावरण जैन-धर्म से प्रभावित था। गूर्जर-नरेश जयसिंह और कुमारपाल ने जैन-धर्म को बहुत ही प्रश्रय दिया और कुमारपाल का जीवन जैन-आचार का प्रतीक बन गया था। सम्राट अकबर भी हीरविजयसूरि से प्रभावित थे । अमेरिकी दार्शनिक विलयरेन्ट ने लिखा है--"अकबर ने जैनों के कहने पर शिकार छोड़ दिया था और कुछ नियत तिथियों पर पशहत्याएं रोक दी थीं। जैन-धर्म के प्रभाव से ही अकबर ने अपने द्वारा प्रचारित दीने-इलाही नामक सम्प्रदाय में मांस-भक्षण के निषेध का नियम रखा था।" जैन मंत्री, दण्डनायक और अधिकारियों के जीवन-वृत्त बहुत ही विस्तृत हैं । वे विधर्मी राजाओं के लिए भी विश्वासपात्र रहे हैं । उनकी प्रामाणिकता और कर्त्तव्यनिष्ठा की व्यापक प्रतिष्ठा थी। जैनत्व का अंकन पदार्थों से नहीं, किंतु चारित्रिक मूल्यों से ही हो सकता है। जन राजा भगवान् महावीर के युग में भारत में गणतन्त्र और राजतन्त्र दोनों प्रकार की शासन-प्रणालियां प्रचलित थीं । अनेक राजे महावीर के भक्त थे। अनेक राजे जैन परम्परा में दीक्षित हुए। श्रेणिक, कोणिक, उदायि आदि राजाओं के पश्चात् नंद राजाओं ने जैन धर्म को संरक्षण दिया। नंदों के उत्तराधिकारी राजा जैन धर्म के प्रश्रय दाता रहे हैं। चन्द्रगुप्त मौर्य दढ़ जैन था। वह आचार्य भद्रबाह के साथ दक्षिण गया और दक्षिण भारत में कर्नाटक प्रदेश की 'चन्द्रगिरि' पहाड़ी पर समाधिपूर्ण मरण प्राप्त किया। सम्राट अशोक का पुत्र कुणाल जैन धर्मावलम्बी था । वह उज्जयिनी प्रदेश का राज्यपाल था। कुणाल के पुत्र संप्रति ने जैन धर्म के विस्तार के लिए बहुत प्रयत्न किया। उड़ीसा में लगभग सात शताब्दियों तक जैन धर्म का प्रभुत्व रहा । इस प्रकार ईसा पूर्व की पहली-दूसरी शताब्दी से ईसा की दसवीं शताब्दी तक अनेक स्थानों पर जैन राजे, जैन मन्त्री, जैन कोटपाल, जैन कोषाध्यक्ष आदि थे । दक्षिण भारत में लगभग हजार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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