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________________ जैन संस्कृति वर्ष तक जैन शासकों का प्रभुत्व रहा । महाराज खारवेल की खारवेल का जन्म लगभग ई० पू० १६० में हुआ । पन्द्रह वर्ष आयु में उन्हें युवराज पद प्राप्त हुआ । २४ वर्ष की आयु में उनका राज्याभिषेक हुआ । उन्होंने लगभग १३ वर्ष तक राज्य किया। आगे का इतिहास विश्वस्त रूप से प्राप्त नहीं होता । 1 ये कलिंग [ उड़ीसा ] के समर्थ शासक थे । इनका वंश 'चेति' था । उसने पराक्रम से अनेक देशों को जीतकर अपने राज्य में मिलाया ; राज्य प्राप्ति के तेरहवें वर्ष में श्रावक व्रत स्वीकार किए । इन्होंने केवल तेरह वर्ष तक राज्य किया, किन्तु कलिंग का प्रभाव सारे भारत पर व्यापक हो गया । शेष जीवन इन्होंने धर्माराधना में बिताया । इनका इतिहास - प्रसिद्ध हाथीगुम्फा शिलालेख उड़ीसा प्रदेश पुरी जिले में स्थित भुवनेश्वर से तीन मील की दूरी पर उदयगिरि पर्वत पर बने हुए हाथीगुम्फा मंदिर के मुख एवं छत पर‍ उत्कीर्ण है । इसकी तिथि ई० पू० १५२ है । इसका प्रारंभ अर्हतों और सिद्धों की वंदना से होता है । १०५ ई० ३० पू० १५३ में कुमारी पर्वत पर इन्होंने जैन मुनियों का महा सम्मेलन किया और उसमें द्वादशांगी श्रुत के उद्धार के लिए प्रयत्न किया । महाराज सम्प्रति महाराज अशोक का पुत्र कुणाल 'अंधा' हो गया था। उसके पुत्र का नाम था संप्रति । वह उज्जैनी का सामंत था । उसने अपने पराक्रम से दक्षिणापथ, सौराष्ट्र, आंध्र तथा द्राविड़ देशों पर विजय प्राप्त की थी । उसने अपने अधीनस्थ राजाओं को जैन धर्म की विशेषताओं से परिचित कराया और जैन मुनियों के विहार की देखरेख करने का निर्देश दिया। जैन मुनियों का विहार क्षेत्र विस्तृत हो गया । संप्रति के प्रयास से ही जैन मुनि आंध्र, द्रविड़, महाराष्ट्र आदि सीमा स्थित प्रदेशों में जाने-आने लगे । उसने ई० पू० २३२ से १९० तक लगभग ४२ वर्ष तक राज्य किया । आचार्य सुहस्ती उसके धर्मगुरु थे । लगभग ६० वर्ष की आयु में उसकी मृत्यु हुई । जैन धर्म के उद्धारक के रूप में महाराज संप्रति का नाम प्रसिद्ध है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003083
Book TitleJain Parampara ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1958
Total Pages158
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size7 MB
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