________________
जैन संस्कृति
यह लोकतंत्र या समाजवाद का प्रधान सूत्र है। वाराणसी संस्कृत विश्वविद्यालय के उपकुलपति श्री आदित्यनाथ झा ने इस तथ्य को इन शब्दों में अभिव्यक्त किया है-"भारतीय जीवन में प्रज्ञा
और चारित्र का समन्वय जैन और बौद्धों की विशेष देन है । जैन दर्शन के अनुसार सत्य-मार्ग परम्परा का अंधानुसरण नहीं है, प्रत्युत तर्क और उपपत्तियों से सम्मत तथा बौद्धिक रूप से संतुलित दृष्टिकोण ही सत्य-मार्ग है । इस दृष्टिकोण की प्राप्ति तब संभव है जब मिथ्या विश्वास पूर्णतः दूर हो जाय । इस बौद्धिक आधार-शिला पर ही अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह के बल से सम्यक चारित्र को प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
जैन-धर्म का आचारशास्त्र भी जनतंत्रवादी भावनाओं से अनुप्राणित है। जन्मतः सभी व्यक्ति समान हैं और प्रत्येक व्यक्ति अपनी सामर्थ्य और रुचि के अनुसार गृहस्थ या मुनि हो सकता है।
अपरिग्रह संबंधी जैन धारणा भी विशेषतः उल्लेखनीय है। आज इस बात पर अधिकाधिक बल देने की आवश्यकता है, जैसा कि प्राचीन काल के जैन विचारकों ने किया था । 'परिमित परिग्रह'- उनका आदर्श वाक्य था। जैन विचारकों के अनुसार परिमित परिग्रह का सिद्धांत प्रत्येक गृहस्थ के लिए अनिवार्य रूप से आचरणीय था। सम्भवतः भारतीय आकाश में समाजवादी समाज के विचारकों का यह प्रथम उद्घोष था।"
प्रत्येक आत्मा में अनंत शक्ति के विकास की क्षमता, आत्मिक समानता, क्षमा, मैत्री, विचारों का अनाग्रह आदि के बीज जैन-धर्म ने ही बोये थे । महात्मा गांधी का निमित्त पा, आज वे केवल भारत के ही नहीं, विश्व की राजनीति के क्षेत्र में पल्लवित हो रहे हैं ।
___ भगवान महावीर की जन्मभूमि, तपोभूमि और विहारभूमि विहार था। इसलिए महावीर कालीन जैन-धर्म पहले विहार में पल्लवित हुआ। कालक्रम से वह बंगाल, उड़ीसा, उत्तर भारत, दक्षिण भारत, गुजरात महाराष्ट्र, मध्यप्रांत और राजपूताना में फैला। विक्रम की सहस्राब्दी के पश्चात् शैव, लिंगायत. वैष्णव आदि वैदिक सम्प्रदायों के प्रबल विरोध के कारण जैन-धर्म का प्रभाव सीमित हो गया। अनुयायियों की अल्प संख्या होने पर भी जैन-धर्म का सैद्धान्तिक प्रभाव भारतीय चेतना पर व्याप्त रहा।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org