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जैन परम्परा का इतिहास लगभग बताया जाता है। उन मूर्तियों की सौम्याकृति द्राविड़कला में अनुपम मानी जाती है। श्रवण बेलगोला की प्रसिद्ध जैन-मूर्ति तो संसार की अद्भुत वस्तुओं में से है। यह गोमटेश्वर बाहुबली की सतावन फुट [पांच सौ धनुष्य] ऊंची मूर्ति एक ही पत्थर में उत्कीर्ण है। इसकी स्थापना राजमल्ल नरेश के प्रधानमन्त्री तथा सेनापति चामुण्डराय ने ई० सन् १८३ में की थी। यह अपने अनुपम सौन्दर्य और अद्भुत कान्ति से प्रत्येक व्यक्ति को अपनी ओर आकृष्ट कर लेती है। यह विश्व को जैन-मूर्तिकला की अनुपम देन है।
मध्य भारत [वडवानी] में भगवान् ऋषभदेव की ८४ फुट ऊंची मूर्ति एशिया की सबसे बड़ी मूर्ति मानी जाती है।
मौर्य और शुंग-काल के पश्चात् भारतीय मूर्तिकला की मुख्य धाराएं हैं :
१. गांधार-कला-जो उत्तर-पश्चिम में पनपी।
२. मथुरा-कला-जो मथुरा के समीपवर्ती क्षेत्रों में विकसित हुई।
३. अमरावती की कला -जो कृष्णा नदी के तट पर पल्लवित हुई।
जैन मूर्तिकला का विकास मथुरा-कला से हुआ।
जैन स्थापत्य-कला के सर्वाधिक प्राचीन अवशेष उदयगिरि, खण्डगिरि एवं जूनागढ़ की गुफाओं में मिलते हैं।
उत्तरवर्ती स्थापत्य की दृष्टि से चित्तौड़ का 'कीति-स्तम्भ', आबू के मन्दिर एवं राणकपुर के जैन मन्दिरों के स्तम्भ भारतीय शैली के रक्षक रहे हैं। जैन-पर्व
___ पर्व अतीत की घटनाओं के प्रतीक होते हैं। जैनों के मुख्य पर्व चार हैं :
१. अक्षय तृतीया २. पर्युषण और दसलक्षण ३. महावीर जयन्ती ४. दीपावली
अक्षय तृतीया का सम्बन्ध आद्य तीर्थंकर भगवान् ऋषभनाथ से है। उन्होंने वैशाख सुदी तृतीया के दिन बारह महीनों की तपस्या
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