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जैन संस्कृति
१०१ का इक्षु-रस से पारणा किया । इसलिए वह इक्षु तृतीया या अक्षय तृतीया कहलाता है।
पर्युषण पर्व आराधना का पर्व है। भाद्र बदी १२ या १३ से भाद्र सुदी ४ या ५ तक यह पर्व मनाया जाता है। इसमें तपस्या, स्वाध्याय, ध्यान आदि आत्मशोधक प्रवृत्तियों की आराधना की जाती है। इसका अन्तिम दिन सम्वत्सरी कहलाता है। वर्ष भर की भूलों के लिए क्षमा लेना और क्षमा देना इसकी स्वयंभूत विशेषता है । यह पर्व मैत्री और उज्ज्वलता का संदेशवाहक है।
दिगम्बर-परंपरा में भाद्र शुक्ला पंचमी से चतुर्दशी तक दसलक्षण पर्व मनाया जाता है। इसमें प्रतिदिन क्षमा आदि दस धर्मों में से एक-एक धर्म की आराधना की जाती है, इसे दस लक्षण पर्व कहा जाता है।
महावीर जयन्ती चैत्र शुक्ला १३ को भगवान् महावीर के जन्म दिवस के उपलक्ष में मनाई जाती है।
दीपावली का सम्बन्ध भगवान् महावीर के निर्वाण से है। कार्तिकी अमावस्या को भगवान का निर्वाण हुआ था। उस समय देवों और राजाओं ने प्रकाश किया था उसी का अनुसरण दीप जलाकर किया जाता है।
दीपावली की उत्पत्ति के संबंध में श्रीराम तथा भगवान् श्रीकृष्ण के जो प्रसंग हैं वे केवल जनश्रुति पर आधारित हैं, किंतु इस त्यौहार का जो संबंध जैनियों से है वह इतिहास-सम्मत है । प्राचीन तम जैन ग्रंथों में यह बात स्पष्ट शब्दों में कही गई है कि कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि तथा अमावस्या के दिन प्रभात के बीच सन्धि-वेला में भगवान् महावीर ने निर्वाण प्राप्त किया था तथा इस अवसर पर देवों तथा इन्द्रों ने दीपमालिका सजाई थी।
आचाय जिनसेन ने हरिवंशपुराण में स्पष्ट शब्दों में स्वीकार किया है कि दीपावलो का महोत्सव भगवान महावीर के निर्वाण की स्मति में मनाया जाता है। दीपावली की उत्पत्ति के सम्बन्ध में यही प्राचीनतम प्रमाण है। जैन धर्म का प्रभाव क्षेत्र
भगवान् महावीर के युग में जैन धर्म भारत के विभिन्न भागों में फैला । सम्राट अशोक के पौत्र संप्रति ने जैन-धर्म का संदेश भारत
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