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________________ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि बुद्धि, तर्क और विज्ञान के युग में अपराध, उपद्रव, आक्रमण और हिंसा का अभिक्रम भी किसी से पीछे नहीं है । युग की दौड़ में, ऐसा लगता है, कोई किसी से पीछे रहना नहीं चाहता । अनैतिकता, अप्रामाणिकता और चरित्रहीनता की समस्या भी एक युगीन समस्या बन गई है | इस स्थिति में पारस्परिक अविश्वास, सन्देह और दूसरों को ठगने के प्रयत्न स्वभाविक हो जाते हैं। पूरा समाज निरन्तर भय मानसिक तनाव और चिन्ताओं से घिरा रहता है । उस वातावरण में स्वस्थ चिन्तन, मानसिक शान्ति और निर्बोध आरोग्य की कलपना ही नही की जा सकती है । ७० समस्या के ये बिन्दु ऐसी भयानक रेखाओं का निर्माण करते हैं कि उनसे बनने वाला चित्र कभी आकर्षक नहीं हो सकता । सोचा जाता है कि राज्य के पास प्रबल दंडशक्ति है, फिर क्यों नहीं एक साथ ही सारी समस्याओं से निपट लिया जाए ? पर यह सोच सही नहीं है । यदि दंड शक्ति से समस्याओं का समाधान होता तो वह अब तक हो जाता । यह पुनर्विचार का बिन्दु है । इसी से हम नया मोड़ ले सकते हैं और नयी दिशा का उद्घाटन कर सकते हैं। वह नया आयाम है - समाज की चेतना का रूपान्तरण । पुरानी भाषा में उसे कहा जाता है - आत्मानुशासन या हृदय परिर्वतन । प्रेक्षा ध्यान की भाषा में इसे इस रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है कि वर्तमान समाज की चेतना की परिक्रमा नाभि के आस-पास होती है तब ये सारी समस्याएं पैदा होती हैं और उन समस्याओं से मुक्ति नहीं पायी जा सकती। इनसे मुक्ति पाने का एक उपाय है— चेतना की ऊर्ध्वयात्रा, समाज की चेतना को ऊपर की ओर ले जाना । वह जब हृदय, कंठ और मस्तिष्क के आस-पास परिक्रमा शुरू करती है तब ऊपर की समस्याएं एक-एक कर समाधान के बिन्दु पर पहुँच जाती हैं । अपेक्षा है आस्था की, अनुसंधान, प्रयोग और प्रशिक्षण की । इस श्रेय के संविभाग में अणुव्रत का भाग कितना होगा, यह आज कसौटी पर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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