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________________ अधिनायकवाद और स्वतंत्रता स्वतंत्रता और परतंत्रता—ये दोनों इस युग के बहु-चर्चित शब्द हैं। हमने इन दोनो शब्दों को राष्ट्र के सन्दर्भ में समझने का प्रयत्न किया है । जिस राष्ट्र पर दूसरे राष्ट्र का शासन होता है वह परतंत्र और जहां अपना शासन होता है वह स्वतंत्र । दूसरे राष्ट्रों पर शासन करने की मनोवृत्ति को साम्राज्यवादी मनोवृत्ति कहा जाता है । साम्राज्यवाद लगभग समाप्त हो चुका है, पर नहीं कहा जा सकता कि साम्राज्यवादी मनोवृत्ति समाप्त हो चुकी है। पहले साम्राज्य का विस्तार प्रत्यक्ष में होता था, आज यह परोक्ष में हो रहा है। पहले वह सैनिक शक्ति से होता था, आज वह आर्थिक प्रभुत्व से हो रहा है । दूसरों को अधीन रखने की मनुष्य की मौलिक मनोवृत्ति है। इस परतंत्रीकरण की मनोवृत्ति को जब-जब बदलने का प्रयत्न होता है तब-तब वह रूपान्तरित हो जाती है, किन्तु अपने अस्तित्व को निरन्तर बनाए रखती है। जैसे चरितार्थ हो रहा है अनेकान्त का नित्यानित्यवाद । साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का एक रूप समाप्त होता है,दूसरा जन्म लेता है और मौलिक मनोवृत्ति ध्रुव रहती है । इस मनोवृत्ति को राष्ट्रीय सन्दर्भ में भी देख सकते हैं। अधिनायकवादी मनोवृत्ति साम्राज्यवादी मनोवृत्ति का ही एक संस्करण है । शक्तिशाली व्यक्ति दसरों की अपेक्षा कम रखता है। वह अपने चिन्तन, विचार और निर्णय को ही अधिक महत्व देता है। उसमें विरोधी विचारों को सहने की क्षमता भी नहीं होती। विरोध या विरोधी को कुचलना उसका एक कर्तव्य-सा बन जाता है । वर्तमान में अधिनायकवादी मनोवृत्ति अधिक प्रभावी हो रही है। कहा जाता है, प्रत्येक आदमी स्वतंत्रता को पसन्द करता है । मैं तो ऐसा नहीं सोचता। परतंत्रता को पसन्द करने वाले लोगों की हमारी दुनिया में कमी नहीं है । स्वतंत्रता का दीप, शक्ति की बाती और जागरूकता के तेल से जलता है। ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं है जो न शक्ति के विकास का प्रयत्न करते हैं और न जागरूक रहने का । फ्रांस की क्रान्ति के समय जो स्वतंत्रता-प्रेमी लम्बे समय तक कारावास में रहे, वे इतने प्रमादी और आलसी बन गए कि कारावास से मुक्त होने पर उन्होंने फिर कारावास में रहना ही पसन्द किया । जिन्हें अपनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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