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मूल का सिंचन
फूल स्वयं बता रहे हैं कि उसकी सुन्दरता का कारण है मूल का सिंचन । जिसने जड़ को सींचा उसने सारे जगत् को सुन्दर बनाया। जो मूल को नहीं सींच पाया, पत्तों तक ही उलझ गया, वह कभी सुन्दरता को पैदा नहीं कर सका । अनुशासन की समस्या है किन्तु उससे भी बड़ी समस्या यह है कि हम समस्या के मूल में जाने की चेष्टा नहीं करते हैं । समस्या के मूल को पहचानने की चेष्टा नहीं करते हैं । मूल के सिंचन की बात कम सोचते हैं। केवल फूलों को संवारना चाहते हैं, पत्तों को संवारना चाहते हैं । कभी ऐसा नहीं हुआ कि फूलों और पत्तों को सींचने से फल हरे-भरे हुए हों। जड़ को सींचा जाता है, तभी सुन्दरता आती है ।
समस्या बाहर नहीं, भीतर है
हम समस्या का समाधान हमेशा बाहर में खोजते हैं । इस एकांगी दृष्टिकोण के कारण सारी समस्याएं उलझती जा रही हैं। जबकि समस्या का उपादान हमारे भीतर में है । हम समाधान बाहर से कैसे प्राप्त कर सकते हैं ? सबसे पहले हमें अपनी वृत्ति बदलनी होगी। जब तक हमारी वृत्ति नहीं बदलेगी तब तक हमारा व्यवहार नहीं बदल सकता, हमारा आचरण नहीं बदल सकता । सबसे पहले दृष्टिकोण को बदलने की जरूरत है । हमारी दृष्टि बदलनी बहुत अपेक्षित है । आंख का एक रोगी डॉक्टर के पास आया । चश्मा लेना था। डॉक्टर ने रोगी से कहा- सामने देखो । क्या लिखा है ? उसे पढ़ो। रोगी ने पूछा- कहां लिखा है ? डॉक्टर ने कहा- पट्ट पर लिखा है। रोगी ने कहा- पट्ट कहां है ? डॉक्टर ने कहा— सामने भींत पर है। रोगी ने फिर पूछा— भींत कहां है ? डॉक्टर ने कहा— चले जाओ । जिसकी दृष्टि इतनी खराब हो गई है कि उसे भीत भी दिखाई नहीं देती, उसकी आंख का इलाज कैसे किया जा सकता है ? आवेगों पर नियन्त्रण
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जब तक अनुशासन के प्रति हमारा दृष्टिकोण सही नहीं होता, तब तक अनुशासन की स्थापना नहीं हो सकती है दृष्टि बदलने के साथ-साथ दो बातें और अपेक्षित हैं एक आवेगों पर अनुशासन और दूसरा इन्द्रियों पर अनुशासन । हम
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