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________________ मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि अनुशासन को लाना चाहते हैं किन्तु स्वयं पर अनुशासन नहीं होता, स्वयं के कार्यों पर अनुशासन नहीं होता। जब तक हमारा स्वयं पर अनुशासन नहीं होगा, तब तक बात बनेगी नहीं। हर व्यक्ति में आवेग होता है, क्रोध होता है, अहंकार होता है । जब तक हमारा इन पर नियन्त्रण नहीं होगा, तब तक अनुशासन की बात नहीं सोची जा सकती। आवेग दोनों प्रकार के होते हैं। प्रियता का भी होता है और अप्रियता का भी होता है। दोनों पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए । ६६ मैं आप लोगों के सामने एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूं। एक गरीब व्यक्ति ने लाटरी का टिकट खरीदा। संयोग की बात कि वह लाटरी मे पांच लाख रुपए जीत गया। अधिकारियो के सामने प्रश्न आया उस गरीब आदमी को पांच लाख रुपए जीतने की सूचना कैसे दी जाए ? अचानक पांच लाख रुपए जीतने की खुशी में उसका हार्ट फेल हो सकता है। एक डॉक्टर ने कहा कि मुझे यह कार्य सौंप दीजिए। मैं बहुत अच्छी तरह समझाकर सूचना दे दूंगा। डॉक्टर ने जाकर उस आदमी को नमस्कार किया । गरीब आदमी ने सोचा कि इतना बड़ा आदमी आज उसे कैसे नमस्कार कर कहा है ? उसने पूछा- 'आप कौन है ?' उत्तर मिला, 'डॉक्टर हूं ।' 'आप कैसे आए है ?' उत्तर मिला, 'वैसे ही आपसे मिलने आया हूं ।' इधर-उधर की बातें होने के बाद डॉक्टर ने कहा—'यदि आपको बीस हजार रुपए मिल जाएं तो आप क्या करेंगें ?' उसने कहा-'ऐसा कहां सम्भव है ? हम गरीब आदमी है। बीस रुपये के लिए भी तरसते है ।' डॉक्टर ने कहा- 'मान लीजिए कि मिल गए तो आप क्या करेंगें ।' उसने कहा - 'दस हजार रुपये आपको दे दूंगा।' डॉक्टर ने फिर पूछा- यदि आपको पांच लाख रुपये मिल जाएं तो ?' उस गरीब आदमी ने कहा- 'ढाई लाख रुपये आपको दे दूंगा।' डॉक्टर ने कहा- 'अरे ढाई लाख रुपये मुझे दे दोगे, और इतना कहते ही डॉक्टर का हार्ट फेल हो गया। जो दूसरो को समझाने के लिए गया था, वह स्वयं चल बसा। जब तक हमारा इन्द्रियों पर अनुशासन नहीं होगा, तब तक हम अच्छा काम नहीं कर सकेंगें। किन्तु प्रश्न होता है कि होगा कैसे ? क्या कहने मात्र से हो जाएगा अनुशासन, क्या उपदेश से हो जाएगा अनुशासन ? मै ऐसा नही मानता हूं । यह सम्भव नहीं है । कहने मात्र से अनुशासन हो जाता तो आज हर धर्म का आदमी अनुशासित होता । किन्तु धर्म को मानने वाले लोग भी अनुशासित नही है । क्योकि कोरा उपदेश कभी जीवन में अनुशसन नहीं ला सकता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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