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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि को क्षीण करती है उसे पाल लिया और मन ही मन उसे कह दिया-अजर-अमर रहो तुम, हमारे साथ निरन्तर बैठो। यह मानसिक चिन्ता, मानसिक तनाव बुढ़ापा लाता है । जिनशासन में जाने वाला व्यक्ति मानसिक चिन्ताओं, मानसिक तनावों से नहीं घिरता, इसलिए उसका बुढ़ापा भी दुःखदायी नहीं होता । यों तो वह देरी से आता है । शारीरिक बुढ़ापा आता है तो भी मानसिक बुढ़ापा उसे नहीं सताता।
जिनवाणी के द्वारा व्याधियां कैसे मिटती हैं ? किस प्रकार रोग मिटाए जा सकते हैं? कितनी बड़ी वह चिकित्सा है ? अगर इसे समझ लिया जाए, इसका उपयोग किया जाए तो डॉक्टरों को बार-बार बुलाने की जरूरत नहीं रहेगी। बुलाना तभी पड़ेगा जब कोई अनिवार्यता की स्थिति आ जाए। दवाइयों का भारी-भरकम सूचीपत्र लेकर मेडिकल की दुकानों के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे। आज का विश्वास हमारा ऐसा हो गया कि जो डॉक्टर दवाइयों की लम्बी तालिका बनाकर नहीं देता उसे हम अच्छा डॉक्टर ही नहीं समझते। लुधियाना के सी.एम.सी. हॉस्पिटल के मुख्य फिजीशियन ने एक दिन मुझसे कहा—महाराज ! मैं दवाई में विश्वास नहीं करता। मैं मानता हूं कि दवाइयां बहुत नुकसान पहुंचाती हैं । मैं एक दवा लिखता हूं रोगी को । मैंने कहा-आपका यह विश्वास? वे बोले-मैं विश्वासपूर्वक कहता हूं कि दवाइयां बहुत खतरनाक होती हैं। इसीलिए बहुत सारे रोगियों को तो यही कह देता हूं कि जाओ, तुम्हें दवा की कोई जरूरत नहीं, भोजन बदल दो, ठीक हो जाओगे। किसी-किसी को अनिवार्य समझकर सिर्फ एक दवा लिख देता हूं। किन्तु भरोसा नहीं होता रोगी को । वह छोटे डॉक्टरों के पास जाता है कि केवल एक दवा से हम कैसे ठीक होंगे। डॉक्टर साहब के पास गए पर उन्होंने तो कोई दवा ही नहीं लिखी । वह समझदार डॉक्टर दस-बीस दवाइयां लिख देता है और पांच सौ-हजार रुपयों का बिल बना देता है । मरीज को भी डॉक्टर की योग्यता पर विश्वास हो जाता है । वह सभी से कहने लगता है कि ये डॉक्टर साहब बड़े अच्छे हैं । यह है आज की मनःस्थिति, हमारी दोषपूर्ण आस्था । हमारी आस्था बदले, जिनवाणी में बीमारियों को मिटाने की जो क्षमता है उसे हम समझें और उसका प्रयोग कर स्वास्थ्य-लाभ करें।
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