________________
जिन शासन: १ जाना, पुरानी बातें याद करना और याद कर दुःख या सुख का अनुभव करना । एक समय हम ऐसा करते थे, हमारे समय में ऐसा होता था, अतीत को स्मरण करना और उस पर सिर धुनना । बाते याद करते जाना, स्मृतियों का चक्का चलते रहना, स्मृतियां मुक्त होती रहें। किन्हीं स्मृतियों के आधार पर आदमी हंसता रहे
और किन्हीं स्मृतियों के आधार पर आदमी रोता रहे-यह सबबुढ़ापे का मानसिक लक्षण है। जिस व्यक्ति में काम करने की क्षमता होती है, वह कभी बूढ़ा नहीं होता।
एक बार राजलदेसर में साधु-साध्वियों की गोष्ठी थी। गोष्ठी में लम्बी चर्चा चली। आचार्यवर ने कहा-'महाप्रज्ञ ! तुम युवाचार्य हो गए इसलिए यह अपने आप ही सिद्ध हो गया कि मैं वृद्धाचार्य हो गया। पर मैं काम करने की दृष्टि से वृद्ध नहीं हूं। काम करता रहूंगा। तुम अपना काम करो, मैं अपना काम करूंगा। तुम्हें इस काम में अभी नहीं डालूंगा। तुम्हारे कार्य में व्यवधान में नहीं करूंगा। तुम युवाचार्य हो गए इसलिए आचार्य का भी काम करो और उपाध्याय का भी काम करो। ये दोनों काम तुम्हारे चलें, चलते रहें क्योंकि इनकी आज बहुत जरूरत है। मैं अपना काम करता रहूंगा, तुम्हें अभी इन कामों में नहीं डालूंगा। इसका मतलब है कि मैं काम से मुक्त नहीं हो रहा हं।'
जो आदमी काम से मुक्त हो गया, समझ लो अनायास ही वह बूढ़ा हो गया। आज की भाषा में रिटायर्ड होने का मतलब है-आधा बूढ़ा हो जाना, पचास प्रतिशत बढ़ा बन जाना। वह सोचता है-अब तो मैं बेकार हैं। इस 'बेकार' शब्द ने ही एक ऐसा प्रभाव पैदा कर दिया कि जो 55 वर्ष या 58 वर्ष का होता है, जिसमें कर्मजाशक्ति होती है, काम करने की क्षमता होती है, उससे यह कहा जाए कि अब तुम यह काम करो तो वह यही कहेगा कि अब मुझसे यह काम नहीं होगा, इतना काम करूंगा तो मेरी शक्ति और घट जाएगी । काम करने से तो शक्ति घटती नहीं, पर वह चिन्ता अवश्य ही शक्ति को क्षीण कर देती है। डॉ. नथमल टांटिया इसके उदाहरण हैं। इन पर वह रिटायरमेंट का असर नहीं हुआ। दिन में आठ घंटा, दस घंटा और बारह घंटा भी कोई काम लेने वाला हो तो काम दे देते हैं, पढ़ लेते हैं । यह अनुभव नहीं करते कि मेरी शक्ति क्षीण हो जाएगी।
यह हमारा गलत चिन्तन है। जिससे शक्ति बढ़ती है, उसे हमने शक्ति क्षीण होने का साधन मान लिया और यह बुढ़ापे की चिन्ता जो वास्तव में शक्ति
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org