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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि होने का डर रहता है और मरने का तो सबसे बड़ा डर रहता है । जन्मने का डर नहीं लगता क्योंकि इसके बारे में वह जानता ही नहीं। किन्तु जन्म लेना भी एक बीमारी मानी जाती है। चौथी बीमारी है—शरीर की। चार दुःख माने जाते हैं—जन्म, मरण, जरा और व्याधि । जिनवचन में बुढ़ापे को हरण करने की क्षमता है। जिनवचन मृत्यु का भी हरण कर सकता है। रोग का निवारण कर अजेय
और अमर बना सकता है। ऐसा लगता है कि यह अतिशयोक्ति है। भला जिनवचन बुढ़ापे का हरण कैसे करेगा? यदि ऐसा होता तो जिनवचन का अखंड पाठ कर सारे बूढ़े जवान बन जाते । कैसे हरण होगा? यदि मरण का हरण हो सके तो शायद जो लोग मरने के निकट हैं, वे तो जरूर अखंड पाठ शुरू कर देंगे कि अब तो मरेंगे नहीं, अमरता का पट्टा हमें मिल गया। जिनवचन से यदि बीमारी समाप्त होती तो सारे दवाखाने बंद हो जाते और वहां जिनवचन का अखंड पाठ चलने लगता । क्या यह अतिशयोक्ति नहीं है ? क्या लिखने वालों ने कोई ऐसी बात नहीं लिख दी जो अस्वाभाविक है ? ऐसा सहज ही एक प्रश्न उभरता है । किन्तु हम थोड़ा गहराई में जाएं तो यह बात सत्य प्रतीत होगी। स्वयं मेरे मन में यह प्रश्न बहुत बार उठता था कि योग के ग्रन्थों में जहां भी देखो लिखा मिलता है यह प्रयोग करो तो 'अजरामरो भविष्यति' अजर-अमर हो जाओगे। यह लिखने वाले भी मर गए । 'अजरामरो भविष्यति'-लिखने वाले स्वयं तो बढ़े होकर मर गये, फिर कैसे उनकी बात को सच माने । शब्दों में ही रहें तो बड़ा विरोधाभास लगता है और हृदय तक पहुंचने का प्रयत्न करें तो बहुत सार भी उपलब्ध हो जाता है । अजर और अमर होगा-इसका तात्पर्य यह नहीं कि कभी बूढ़ा नहीं होगा और नहीं मरेगा । इसका मतलब यह है कि बुढ़ापे को भी हर्ष के साथ स्वीकार कर लेगा और बुढ़ापे के जो दुःख होते हैं वे दुःख नहीं होंगे । मृत्यु को भी हर्ष के साथ स्वीकार करेगा और मरण का भय नहीं सताएगा। बुढ़ापा भी सुखद होगा और मरण भी सुखद होगा, अधिक लाभदायी बन जाएगा। इतना तो निश्चित ही है कि ज्यादा बूढ़ा वह बनता है जो हर क्षण तनाव से भरा रहता है । आज मनोवैज्ञानिक इस बात को मानते हैं कि बुढ़ापा तनाव के कारण शीघ्र आता है । जिह व्यक्ति में जितना अधिक मानसिक तनाव होता है वह उतना अधिक बूढ़ा होता है। बूढ़े होने का लक्षण क्या है? कुछ तो शारीरिक लक्षण होते हैं बुढ़ापे के, जैसे-दांत गिर जाना, बाल सफेद हो जाना, ये बुढ़ापे के लक्षण हैं । कुछ मानसिक लक्षण होते हैं, जैसे-निराश हो जाना, श्रवण-शक्ति कम हो
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