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जिन शासन :१ भी पहले इसी चीते ने मेरे श्वसुर को खाया था। कन्फ्यूशियस ने कहा-जब चीते ने तुम्हारे श्वसुर को, पति को और अब पुत्र को खा डाला तो फिर तुम इस घोर जंगल में क्यों रहती हो? नगर में क्यों नहीं चली जाती ? उसने कहा-मैं नगर में नहीं जाना चाहती, वहां एक क्रूर अत्याचारी का शासन है। यहां चाहे चीता खा खाए, पर शासन तो अत्याचारी का नहीं है । रहूंगी तो यहीं, मैं वहां नहीं जाऊंगी।
हर व्यक्ति घबराता है अत्याचारी शासन से । फिर अत्याचारी का शासन बनता क्यों है ? वह बनता है मिथ्या धारणाओं के कारण । हमने यह मान लिया कि क्रूरता के बिना शासन नहीं चल सकता, डंडे के बिना शासन नहीं चलता, भय के बिना शासन नहीं चलता । भय के बिना प्रीति नहीं होती । ऐसी मिथ्या मान्यताएं हमने बना ली और उनका प्रयोग कर रहे हैं। करने वालों को शायद अनुभव नहीं होता, पर जिन पर बीतती है उनको मालूम होता है कि यह शासन कैसा है। आदमी सचमुच अनुशासन नहीं चाहता और कर अनुशासन तो चाहता ही नहीं। कभी नहीं चाहता। हम चाहते हैं कि अनुशासन आए । मुझे तो नहीं पता कि अनुशासन की इतनी रट क्यों लगाई जा रही है ? क्यों जरूरी है अनुशासन? इसीलिए कि एक आदमी बड़ा बना रहे, दूसरा छोटा बना रहे । दूसरा छोटा न हो तो कोई बड़ा नहीं बन सकता और एक आदमी को बड़ा बनने के लिए दूसरे को छोटा बनाना जरूरी है और छोटा बनाए रखने के लिए अनुशासन रखना जरूरी है । यह तो वही बात हुई, जमींदारी रहनी है तो गुलामी की प्रथा भी जरूरी है और गुलाम किसी को रखना है तो फिर कानून भी जरूरी है। बिना कानून के कोई गुलाम नहीं रह सकता, बिना कानून के कोई दास नहीं रह सकता । समाज का जीवन ऐसा जीवन होता है कि पहले एक मिथ्या दृष्टि का निर्माण करो, मिथ्या मान्यता बनाओ और फिर उसके आधार पर जीवन चलाओ । उसमें जब कठिनाई आए तो डंडे का प्रयोग करो । उस कठिनाई को हल करने के लिए उसके सिवा कोई और उपाय नहीं हो सकता । यदि हमारे समाज में ये मिथ्या मान्यताएं नहीं होती, गलत धारणाएं हम नहीं बनाते तो हमें डंडे के प्रयोग की आवश्यकता ही न होती । इसीलिए हमने ऐसा मान लिया कि कुछ व्यक्ति शासन करने के लिए पैदा होते हैं, शेष सारी जनता उस शासन को मानने कि लिए पैदा होती है। आज स्थिति यह हो गई है कि शासन किसी को मिल नहीं रहा है। शासन वह होता है, जिसके द्वारा समस्याओं का समाधान हो । यही अर्थ है शासन का। कोई
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