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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि व्यक्ति अपनी स्वतंत्रता को सीमित करता है तो उसका अर्थ है, उसको प्रतिफल मिले, समस्याएं कम हों । जिसमें समस्या को कम करने की क्षमता हो, वह शासन हो सकता है।
प्रश्न होगा कि क्या जिन शासन में हमारे मानवीय जीवन की समस्याओं को कम करने की क्षमता है? आचार्य ने उत्तर में कहा-हां, वह मानवीय समस्याओं को सुलझाने में सक्षम है। जो लोग जिन शासन की शरण में आते हैं, वे संसार-सागर को तर जाते हैं। बहुत महत्त्वपूर्ण बात है संसार सागर को तर जाना । आज की भाषा में कहूं तो यही है समस्याओं का पार पा जाना । समस्याओं का आर होता है तो पार भी होता है । समस्या क्या है ? समस्या एक नहीं, हजारों हैं। उन समस्याओं में एक बड़ी समस्या है—बीमारी । बीमारी तीन प्रकार की होती है—शरीर की बीमारी, मन की बीमारी और आत्मा की बीमारी । आध्यात्मिक रोग, मानसिक रोग और शारीरिक रोग। यह जिनवचन इन तीनों बीमारियों के लिए औषधि है, दवा है, बशर्ते कि कोई लेना जाने । जिनवाणी के आधार पर शरीर के रोगों की चिकित्सा की जा सकती है, मन और भावना के रोगों की चिकित्सा की जा सकती है । कषाय भावना का रोग है । क्रोध, मान, माया, लोभ, भय-ये सब भावना के रोग हैं, मानसिक उलझनें हैं । सुश्रुत ने व्याधियों का जो वर्गीकरण किया है, उसमें एक है—मानसिक बीमारी । मानसिक बीमारी का वही लक्षण दिया है, जो आर्तध्यान का लक्षण है । इष्ट का वियोग न हो जाए और अनिष्ट का योग न हो जाए-इस प्रकार की चिन्ता जिसके मन में जाग जाती है, वह मानसिक रूप से बीमार हो जाता है । जो व्यक्ति निरन्तर यह सोचता रहे कि यह वस्तु मिली है, कहीं चली न जाए। धन मिला है, कहीं चला न जाए । इतना बड़ा परिवार मिला, कहीं समाप्त न हो जाए। इतना पदार्थ मिला है, कहीं चला न जाए और कहीं पड़ोसी खराब न आ जाए। कहीं चोर न आ जाएं । कोई लुटेरा रास्ते में न मिल जाए। कोई ऐसा अधिकारी न आ जाए जो हमारे दो नम्बर के खाते पकड़ ले । प्रिय का वियोग न हो, अप्रिय का योग न हो, यह निरन्तर चिन्ता रहती है तो मानसिक बीमारी बन जाती है । इसे धर्म की भाषा में कहा जाता है-मानसिक रोग । आज सारा समाज इस मानसिक रोग से पीड़ित है। लोग आश्चर्य करते हैं कि आज हार्ट ट्रबल या हार्ट अटैक इतना ज्यादा क्यों बढ़ रहा है ? हृदय रोग की बातें तो इतनी नहीं सुनी जाती थीं । आज तो छोटे-छोटे लोगों को भी हार्ट अटैक होने लगा है। हार्ट अटैक क्यों नहीं होगा? जब मन के रोगों
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