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________________ ४० मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि शासन का विकास होता है । क्षान्ति का अर्थ है—सहिष्णुता । जो भी कठिनाई आए, समस्या आए, हमारा ध्येय विचलित न हो। छोटी या बड़ी उलझन आ जाए, उसे हम झेलें, सहन करें, उसे पार करें, उसमें डूब न जाएं। इतनी शक्ति का विकास हो जाए तो उसी का नाम है—क्षान्ति । यही है सहिष्णुता का विकास, जिसकी आज के समाज में सबसे ज्यादा कमी है। आज तो ऐसा लगता है कि सहिष्णुता कोई जानता ही नहीं। किसी की भी परीक्षा करनी हो तो दो शब्द कहकर देख लो, पता लग जाएगा। आज के समाज में सहिष्णुता का तत्त्व विलुप्त होता जा रहा है। हो गया कहें तो भी कोई कठिनाई नहीं होगी । मुक्ति का अर्थ है-निर्लोभता, अनासक्त भाव । ऋजुता का अर्थ है-मन, वाणी और शरीर की सरलता, वक्रता का सर्वथा वर्जन । मृदुता का अर्थ है--मार्दव, कोमलता । ये चार तत्त्व जिसमें विकसित होते हैं, वह जिन शासन होता है, आत्मा का शासन होता है। इसके विपरीत असहिष्णुता, लोभ, कुटिलता और कठोरता-ये चार तत्त्व जिसमें होते हैं, वह क्रूरता का शासन होता है । वह जिन शासन नहीं, अजिन-शासन होता है । इन दोनों में अन्तर है। लोगों में धारणा हो गई कि भय के बिना शासन नहीं चलता । बात ठीक है, सब लोग समान नहीं होते और भय के बिन शासन नहीं चलता। किन्तु इस बात को भी साथ में स्वीकार करना चाहिए कि भय के साथ जो शासन चलता है, वह लड़खड़ाता हुआ चलता है । वह शासन प्रकाश में तो ठोक चलता है, किन्तु अंधकार में बिलकुल उल्टा चलता है । सामने बिलकुल ठीक चलेगा, पर अंधकार में नहीं । अंधकार का मतलब रात नहीं, अंधकार का मतलब है-जब कोई नहीं देख रहा हो । छिपे में बिलकुल उल्टा चलेगा । जैसे ही भय आता है, सब भूगृह में चले जाते हैं। चीनी भूमिगत हो जाती है, अनाज भूमिगत हो जाता है, आदमी भूमिगत हो जाते हैं और मजे से शासन चलता है। मिथ्या धारणाओं के कारण हमने ऐसा मान लिया। कुछ लोग यह मान बैठे कि जितनी क्रूरता की जाएगी शासन उतना ही ठीक चलेगा। ___ कन्फ्यूशियस अपने शिष्यों के साथ ताई पहाड़ से गुजर रहे थे। देखा, एक स्त्री रो रही है । कन्फ्यूशियस उसके पास गए। पूछा--बहन ! रो क्यों रही हो? उसने कहा-क्या करूं, यह बहुत बड़ा भयानक जंगल है। इस जंगल में चीते बहुत रहते हैं। एक आदमखोर चीते ने मेरे लड़के को खा लिया। कहते-कहते वह और जोरों से रो पड़ी। कन्फ्यूशियस ढांढस बंधाते हुए बोले-तुम ज्यादा क्यों रो रही हो? उसने कहा-इसी चीते ने पहले मेरे पति को खाया। उससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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