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मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि चंदेसु निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं पयासयरा।
सागरवरगंभीरा, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥ यह लोगस्स के सात श्लोकों में से एक है। भावना का बहुत बड़ा प्रयोग है। पहले चरण का अर्थ है-चंद्रमा की भांति निर्मल। दूसरे चरण का अर्थ है-सूर्य की भांति प्रकाशक । तीरसे चरण का अर्थ है—समुद्र की भांति गम्भीर । चौथे चरण का अर्थ है-जो सिद्ध हैं वे हमें सिद्धि प्रदान करें । बहुत साधारण-सा अर्थ लगता है, किन्तु समर्पण और श्रद्धा के साथ इस भावना का प्रयोग करें तो चमत्कार घटित हो सकता है। श्रद्धा और समर्पण के साथ में जिसने तादात्म्य स्थापित कर लिया। उसे लगेगा कि यह क्या हो गया । बड़ा अजीब-सा हो रहा है । जिसने इसका प्रयोग नहीं किया वह कह सकता है कि यह क्या? आज के वैज्ञानिक युग में अंधविश्वास की बात कही जा रही है । मैं मानता हूं कि मैं एक धार्मिक व्यक्ति हूं, किन्तु वैज्ञानिक युग में जीता हूं इसलिए वैज्ञानिक भाषा में बात करना पसंद करता हूं, अवैज्ञानिक भाषा में ले जाना मैं पसन्द नहीं करता । अंधविश्वास जैसा मैं कुछ मानता ही नहीं । पुराने लोग कहते थे—यह अंधविश्वास है, यह अंधविश्वास है । मैंने अपनी भाषा बदल दी। किसी को भी अंधविश्वास कहना आज दुःसाहस की बात है। कोई दुःसाहसी व्यक्ति ही कह सकता है कि यह अंधविश्वास है । जिन सैकड़ों-सैकड़ों बातों को हम अंधविश्वास मानते थे, आज वे बातें वैज्ञानिक होती चली जा रही हैं। भावना का प्रयोग आज विज्ञान के क्षेत्र में बहुचर्चित हो रहा है । आज का कोई भी वैज्ञानिक दृष्टि वाला व्यक्ति, जो गुणसूत्रों के बारे में थोड़ा-सा भी जानता है, वह इस बात का ज्ञान रखता है कि आज जीन पर जो खोजें हो रही हैं, वे भावना के प्रयोग की ही खोजें हैं। आज का वैज्ञानिक इस खोज में लगा है कि जीन को बदल कर पूरे बच्चे को बदल दिया जाए। आज कल्पना तो यह की जा रही है कि आने वाले युग में यह हो जाएगा कि एक वैज्ञानिक अपनी लेबोरेट्री में बैठा है। कोई व्यक्ति जाएगा और कहेगा कि हमें ऐसा बच्चा चाहिए तो वह जीन को बदल देगा। यह जीन ले जाओ, वैसा ही बच्चा हो जाएगा। जैसा पसन्द करो, वैसा लड़का। इस पर आज बहुत काम हो रहा है। इसी विषय में दिल्ली विश्वविद्यालय के वाइसचांसलर प्रो. मेहरोत्रा ने कहा था--मुनिजी ! आज जीन पर जो काम हो रहा है, उस पर हम भारतीय दर्शन की दृष्टि से क्या कह सकते हैं ? हमारा प्रवचन था 'प्रेक्षाध्यान' विषय पर दिल्ली विश्वविद्यालय में । वहां कुलपति उपस्थित थे।
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