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________________ समर्पण का सूत्र : चतुर्विशतिस्तव एक घड़ा खरीदने जाता है तो सबसे पहले घड़े को बजाकर देखता है कि वह फूटा हुआ तो नहीं है। जब दो-चार पैसे के घड़े की इतनी परख करता है तो भला जिसे गुरु मानना है उसे दस-बीस गालियां दिए बिना कैसे स्वीकार करे ? परीक्षा करेगा, पहले देखेगा, तोलेगा कि गुरु में समताभाव कितना है, गालियों का क्या प्रभाव होता है उस पर । पूरी जांच-पड़ताल करेगा, फिर स्वीकार करेगा। ऐसा ही हुआ। गालियां बकने वाला वही व्यक्ति एक दिन आचार्य भिक्षु का बड़ा श्रावक बन गया। सत्य के क्षेत्र में--जहां सत्य को जानना है, उसे देखना है, वहां बुद्धि का उपयोग होना चाहिए, तर्क का उपयोग होना चाहिए, विचार का उपयोग होना चाहिए और हो सके तो अनुभव का उपयोग होना चाहिए। श्रद्धा का क्षेत्र है अपनी संकल्प-शक्ति का विकास, भावना का प्रयोग। जहां भावना का प्रयोग करना है, जहां संकल्प-शक्ति का उपयोग करना है, सजन करना है, कुछ निर्माण करना है, वहां श्रद्धा का पूरा उपयोग होना चाहिए। जहां श्रद्धा में एक भी छिद्र बन जाता है, वहां फटी नौका बन जाती है, इबाने वाली नौका बन जाती है । तारने वाली नहीं । भगवान् महावीर की भाषा में-भावना एक नौका है। उसमें यदि छेद नहीं है तो वह पार पहुंचा देती है । एक भी छेद हो गया तो बीच में ही डुबो देती है। श्रद्धा है हमारी भावना में । बड़ा चमत्कार है । जिस व्यक्ति में भावना का बल आ गया, वह अद्भुत काम कर जाता है। अभी दो-चार दिन पूर्व एक चर्चा चल पड़ी। डॉ. टांटिया ने कहा-दर्द बहुत है । मैंने कहा-रंग का प्रयोग करें, भावना का प्रयोग करें । लाल रंग का ध्यान करें। ध्यान किया, भावना का प्रयोग किया। फिर आए और कहने लगे कि इतनी गर्मी हो गई कि रात-भर नींद नहीं ले सका। ऐसा लगा जैसे सारे शरीर में आग लग गई हो । कैसे हो सकता है यह? क्यों हुआ? यदि हम भावना का प्रयोग करें तो जैसा अनुभव करेंगे वैसा हो जाएगा। बीकानेर में शिविर चल रहा था। नमस्कार मंत्र का प्रयोग चल रहा था। लाल रंग का प्रयोग करवाया । वह दिन शिकायतों का दिन रहा। कोई कहताआग लग रही है। कोई कहता—सिर फटा जा रहा है। बड़ी समस्या पैदा हो गई । सारा दिन गर्मी का दिन रहा। कई व्यक्ति शिकायतें लेकर पास में आते रहे । ऐसा क्यों होता है? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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