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“तुम्हारा परिवार तुम्हारे वश में है ?"
"नहीं।"
" पत्नी तो वश में होगी ।"
"नहीं, वह भी नहीं । ”
“तुम्हारा मन तो तुम्हारे में वश है ?" "नहीं ।"
मेरी दृष्टि: मेरी सृष्टि
" अरे भाई ! जब तुम्हारे नौकर-चाकर, तुम्हारा परिवार, तुम्हारी संतानें, पत्नी और यहां तक कि स्वयं तुम्हारा मन तक तुम्हारे वश में नहीं है तो फिर देवता तुम्हारे वश में कैसे होंगे ? सबसे पहले तो अपने मन को वश में करो। " देवता को वश में करने से पहले मन को वश में करो, शरीर और वाणी को वश में करो। आप कोई भी साधना करें- - चाहे व्यवहार की, चाहे परमार्थ की, किन्तु तीन गुप्तियों के बिना कोई वश में नहीं होता । कितना बड़ा सूत्र दिया था भगवान् महावीर ने तीन गुप्तियों की साधना का – मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति । जो आदमी तीन गुप्तियों की साधना नहीं करता, वह अपने मन, वचन और शरीर को वश में किए बिना दूसरों को वश में करना चाहता है, किन्तु ऐसा न कभी हुआ है और न कभी होगा । हम सर्वप्रथम अपने शरीर की साधना करें, कायोत्सर्ग की साधना करें। शरीर को वश में करें और अपने मन को वश में करे । सब वश में हो जाएंगे तो फिर देवता को साधने की जरूरत नहीं होगी । देवता स्वयं अपने आप प्रकट हो जाएंगे। आप देवता को क्यों साधे ? उस देवता से बड़ा देवता तो आपके भीतर बैठा हुआ है। वह है दिव्य आत्मा, दिव्य चेतना । आप अपनी दिव्य चेतना को जगाएं, दूसरे को जगाकर क्या करेंगे ? वे कभी-कभी जगाने वाले की ही बलि ले लेते हैं । उनको न जगाएं।
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जिसने अपने देवत्व को जगा लिया, अपने आपको वश में कर लिया, में उसके लिए मंगल का द्वार खुल गया। मंत्र बहुत हैं। हर परम्परा में है। वैदिक परंपरा में भी बहुत मंत्र है । गायत्री जैसा शक्तिशाली मंत्र है । अथर्ववेद का पूरा भाग मंत्रों से भरा है । बौद्ध परम्परा में भी बहुत सारे मंत्र हैं। बौद्धों ने भी मंत्रों का बहुत विकास किया। जैन परम्परा में भी मंत्रों का प्रयोग होता है । तीनों परम्पराओं में मंत्रों का बहुत विकास हुआ, किन्तु नमस्कार महामंत्र एक अनुपम मंत्र है। इसमें किसी का नाम नहीं । न महावीर का नाम है और न किसी अन्य देवता का । किसी की अर्चना नहीं, किसी की पूजा नहीं । केवल आत्म-तत्त्व की
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