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________________ १७ मंगल सूत्र आराधना | अर्हत् जैन परम्परा में भी हो सकता है और अन्य परम्परा में भी । सिद्ध के लिए कोई ठेकेदारी नहीं। ऐसा नहीं कि जैन परम्परा में ही सिद्ध हों, अन्य परम्पराओं में नहीं । इतना उदार दृष्टिकोण भगवान् महावीर ने दिया कि एक गृहस्थ के वेश में भी सिद्ध हो सकता है और एक साधु के वेश में भी सिद्ध हो सकता है । गृहस्थ के वेश में हमारी परम्परा में सबसे पहले मोक्ष जाने वाली आत्मा है - भगवान् ऋषभ की माता मरुदेवा । वह हाथी पर बैठी है गृहस्थ के वेश में । उसी समय मोक्ष चली गयी । हमारी परम्परा में भी गृहस्थ के वेश में साधु-साध्वी की दीक्षा हुई है । न वेश के साथ कोई आत्मा का विरोध है, न हाथी पर चढ़ने के साथ । मूल प्रश्न है— आत्मा की निर्मलता, आत्म- चेतना का जागरण 1 यह ठीक है कि व्यवहार के जगत का पालन करना पड़ता है किन्तु सूक्ष्म नियम है- अन्तरात्मा के जागरण का । बाकी सारे नियम नीचे रह जाते हैं I " आत्मा को वश में करना यह वशीकरण सूत्र हमारी समझ में आ जाए तो कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाएगा। सबसे बड़ा वशीकरण सूत्र है— तीन गुप्तियों की साधना । सबसे बड़ा वशीकरण सूत्र है- प्रेक्षा ध्यान । ये वशीकरण सूत्र हमारी समझ में आ जाएं तो आगे मंगल, पीछे मंगल। फिर कोई अमंगल नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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