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________________ १४० मेरी दृष्टि : मेरी सृष्टि ___-प्रेक्षाध्यान और जीवनविज्ञान में क्या अन्तर है? “प्रेक्षाध्यान का शैक्षणिक जगत् में जो प्रयोग किया गया है, वह जीवनविज्ञान है। विद्यार्थी शिक्षा जगत् का मूल आधार है। विद्यार्थियों के भावात्मक परिवर्तन के लिए प्रेक्षाध्यान के कुछ विशेष प्रयोगों का चयन कर जो पद्धति स्थिर की गई है उसकी पहचान जीवनविज्ञान के नाम से हो गई । यह विशेषतः विद्यार्थियों के लिए उपयोगी है।" -अहमदाबाद में डॉक्टरों, प्रोफेसरों, विद्यार्थियों आदि के शिविर हो चुकने के बाद एक जिज्ञासा यह उठती है कि क्या प्रेक्षाध्यान की पद्धति अन्तिम रूप से स्थिर हो गई ? अथवा उसमें अभी परिवर्तन और परिवर्द्धन की संभावना है? _ “अन्तिम रूप से स्थिरता की बात कहीं होती ही नहीं। जैसे-जैसे अनुभव बढ़ते हैं, नये-नये द्वार खुलते रहते हैं । चेतना जगत् में विकास की अनन्त संभावनाएं हैं, इसलिए उसके क्षेत्र में किसी भी बात को अन्तिम नहीं कहा जा सकता । प्रतिवर्ष इसमें कुछ न कुछ नये आयाम जुड़ रहे हैं। भविष्य में भी उस योग की संभावना को नकारने का कोई कारण नहीं है।" -अहमदाबाद में अणुव्रत-कार्य को आगे बढ़ाने की अधिक संभावना है या प्रेक्षाध्यान की? _ “अणुव्रत और प्रेक्षाध्यान को विभक्त नहीं किया जा सकता । ये दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । अणुव्रत को जीवनगत बनाने के लिए प्रेक्षा का प्रयोग अनिवार्य है और प्रेक्षा का प्रयोग होने से अणुव्रत का जीवन में अवतरण निश्चित है। इन दोनों की मूल आत्मा में कोई अन्तर नहीं है । अहमदाबाद में प्रेक्षाध्यान का कार्य अधिक आगे बढ़ेगा तो अणुव्रत स्वयं फलित होगा और अणुव्रत-कार्य को बल मिलेगा तो प्रेक्षाध्यान की पृष्ठभूमि पुष्ट हो जाएगी।” ___-प्रेक्षाध्यान के प्रयोग की निष्पत्तियों में अणुव्रत का अवतरण सहज हो जाता है तो फिर अणुव्रत-कार्य के लिए अतिरिक्त रूप से शक्ति का व्यय क्यों किया जाता है? हम अपनी शक्ति को प्रेक्षाध्यान के विस्तार में ही केन्द्रित क्यों नहीं कर लेते? _ “अणुव्रत सामाजिक जीवन में होने वाले व्यवहार का प्रतिबिम्ब है और प्रेक्षाध्यान उसमें प्राण-संचय करने की प्रक्रिया है। इसलिए प्रवृत्ति में ये दोनों जरूरी हैं । जिस प्रकार दो बिन्दुओं से अलग-अलग चलने वाले राही किसी एक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003081
Book TitleMeri Drushti Meri Srushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size8 MB
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