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जिज्ञासितं : कथितं
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यहां से किसी नयी धारा का सूत्रपात होने वाला है। वह नयी धारा कौन-सी है ? क्या उसका सूत्रपात हो गया ?
" प्रेक्षाध्यान और जीवन-विज्ञान, शिक्षा के क्षेत्र में अनिवार्य आयाम बने, इस अपेक्षा का अनुभव उन लोगों ने किया है, जो शिक्षा के क्षेत्र में काम करते हैं । यहां विश्वविद्यालय के शिविर में यह स्वर पूरी प्रखरता के साथ बुलन्द हुआ कि शैक्षणिक जगत में जीवन-विज्ञान एक नया प्रयोग और नयी धारा है ।
“इसी क्रम में अहिंसा सार्वभौम और अहिंसा यात्रा का उपक्रम है. हिंसा और शस्त्रीकरण से उत्पन्न समस्याओं के सन्दर्भ में अहिंसक समाज - संरचना की दिशा में यह एक नया अध्याय बनेगा तथा हिंसक समस्याओं के समाधान में नयी दिशा देगा, ऐसा मेरा विश्वास है । "
-अहिंसा सार्वभौम क्या है ? इसके द्वारा आप क्या करना चाहते हैं ? “अहिंसा सार्वभौम तो अहिंसक समाज-संरचना की दिशा में एक नया दर्शन है । अहिंसा की रट बहुत चलती है पर विशेषतः उसके प्रशिक्षण का कोई क्रम नहीं है । यत्र-तत्र थोड़ा बहुत चलता भी है तो उसकी जानकारी नहीं मिलती । न कहीं अहिंसा के सम्बन्ध में विशेष प्रयोग हो रहे हैं और न कहीं उस पर अनुसन्धान या गवेषण की चर्चा ही है । इसलिए अहिंसा का कोई अनुसन्धान, प्रयोग और प्रशिक्षणात्मक कार्यक्रम चले, जिससे कि वह शक्तिशाली होकर लोक-जीवन को त्राण दे सके। यह अहिंसा सार्वभौम के नये दर्शन का प्राथमिक बिन्दु है उसका दर्शन प्रयोग में से फलित होना चाहिए केवल सैद्धान्तिक चर्चा से नहीं । इसी अर्थ में वह जीवन-दर्शन बन सकता है ।"
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- अहिंसा सार्वभौम का दर्शन पक्ष इतना स्पष्ट नहीं हुआ है । कृपा कर आप कोई उदाहरण देकर समझाएं।
" वह दर्शन मूल्यवान होता है, जिसे जीवन के रूप में प्रतिष्ठा मिल जाए । मार्क्स का दर्शन प्रयोग और प्रशिक्षण की प्रक्रिया से गुजरकर जनजीवन में प्रतिष्ठित हुआ और शक्तिशाली हो गया। मार्क्स का वह प्रयोग एक प्रकार से आर्थिक व्यरस्था के समीकरण का ही प्रयोग था । अहिंसा का दर्शन आज जनमानस में प्रतिष्ठित नहीं है, उसका कारण यही है कि वह प्रयोग और प्रशिक्षण से जुड़ नहीं पाया । अहिंसा के क्षेत्र में अनेक प्रयोग किए जा सकते हैं। जैसे कि उन में एक प्रयोग है हिंसा के अल्पीकरण का । अनावश्यक हिंसा को रोकने के लिए सामूहिक प्रयोग किया जा सकता है। अहिंसा यात्रा उसी श्रृंखला की एक कड़ी है। "
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